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तार: अबुल कलाम आजादको

हों वहाँ उनकी यह स्थिति मत पानेके कौशलके बलपर नहीं, बल्कि अपनी सेवाकी बदौलत ही होनी चाहिए। मत देनेवाले लोग तो हैं ही, लेकिन मत प्राप्त करना है तो याचना किये बिना प्राप्त कीजिए। क्या यह देख सकना बिलकुल आसान नहीं है कि सेवाके लिए न सत्ताकी आवश्यकता है, न पद-प्रतिष्ठाकी? मैं तो चाहता हूँ कि हममें से हर आदमी केवल देशका सेवक बन जाये। मैं चाहूँगा कि अपरिवर्तनवादी लोग ऐसा व्यवहार करें कि स्वराज्यवादी, लिबरल तथा अन्य सब उनकी आवश्यकता महसूस करें। लेकिन, वे ऐसा करें या न करें, मुझे तो अपने विश्वासके अनुसार बरतना ही है। ईश्वरने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी पिछली बैठकमें मुझे तौलकर देखा और पाया कि मुझमें कमी है। मेरे अहंकारने कहा कि स्वराज्यवादियोंसे मुझे अभी और जूझना चाहिए। लेकिन, मेरा तृप्तिहीन सेवाभाव मुझसे कहता है कि मुझे न स्वराज्यवादियोंका विरोध करना चाहिए, न लिबरलोंका और न अंग्रेजोंका ही। मुझे हरएकको दिखा देना चाहिए कि मैं जो कहता हूँ, वही हूँ---अर्थात् मैं हरएकका मित्र और सेवक हूँ। मेरा धर्म ईश्वरकी, और इसलिए मानवताकी सेवा है। लेकिन, अगर मैं एक भारतीयके नाते भारतकी और हिन्दूके नाते भारतीय मुसलमानों की सेवा नहीं करता तो मैं न ईश्वरकी सेवा कर सकता हूँ, न मानवताकी। स्वेच्छासे सेवाका अर्थ है शुद्ध प्रेम। इसलिए अगले वर्ष मुझे इस बातके लिए अपनी शक्ति-भर पूरा प्रयत्न करना है कि अपने छोटेसे-छोटे काममें भी मैं अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उंडेल सकूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-१०-१९२४

२१९. तार: अबुल कलाम आजादको[१]

[ २३ अक्तूबर, १९२४ या उसके पश्चात् ]

मौ० अ० क०
कलकत्ता

मुहम्मद जानेमें असमर्थ। डा० महमूदसे कहें।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०४८९) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. यह जबलपुर से सुन्दरलालका २३ अक्तूबरका तार प्राप्त होनेके बाद भेजा गया था। वह तार इस प्रकार था: "समझौते की कोशिश कर रहा हूँ। मौलाना अबुल कलाम आजादको तत्काल सीधे जानेके लिए या अगर यह न हो तो मौलाना मुहम्मद अली अथवा उतने ही प्रतिष्ठित किसी अन्य मुसलमानको भेजनेके लिए तार दें। अविलम्बनीय। तार द्वारा उत्तर दें।"