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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सृष्टिका क्रम बना ही हुआ है। असत्यपर सत्यकी विजय होती ही है। प्रेम घृणापर विजयी होता ही है और ईश्वर शैतानके विरुद्ध सदा विजय पाता रहता है।

मैंने जिस असहयोगकी कल्पना की थी, वह सबको प्रेम-सूत्रमें पिरोनेवाली चीज थी। लेकिन, कांग्रेसकी भीतरी फूटसे और उससे भी ज्यादा हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्यसे यह स्पष्ट हो गया है कि असहयोग पिरोनेवाली नहीं, बिखरानेवाली चीज साबित हुआ है। इसलिए अब मुझे इसे स्थगित करने की सलाह देकर और अपनी ओरसे पूरा समर्पण करके इसके सौम्य पक्षको दिखाने की कोशिश करनी है। ऐसा करनेके लिए मुझे अपरिवर्तनवादियों को खुश करने की जरूरत नहीं है। उनका तो दावा है कि वे अहिंसा और उसके फलितार्थोंको जानते-समझते हैं। उन्होंने सब कुछ छोड़कर रचनात्मक कार्यक्रममें अपना विश्वास जमा रखा है। मैं उस कार्यक्रममें रंचमात्र भी कमी नहीं करता। उसके विपरीत, मैं जो भी कदम उठा रहा हूँ, सबका उद्देश्य उसे बल देना ही है। हिन्दू-मुस्लिम समस्या सर्वोपरि महत्त्वका सवाल है। हम चाहते हैं कि इसके समाधानमें पूरे देशका लोकमत तत्पर हो। अपना उद्देश्य पानेके लिए हमें थोड़ा झुकना है। हम व्यक्तिगत रूपसे असहयोगके छोटे से-छोटे अंशको भी कायम रखें, किन्तु साथ ही हमें चाहिए कि जो लोग इसमें विश्वास नहीं रखते, हम उनका मार्ग इसके लिए सुगम बनायें कि वे हमें और रचनात्मक प्रयत्नोंमें देशको सहायता दें। गत चार वर्षोंके अनुभवोंने हमें राह दिखा दी है। हमने बहुत कुछ पाया है, लेकिन खोया भी बहुत है। हमें इन उपलब्धियोंको स्थायी बनाना है और जो-कुछ खोया है, उसे प्राप्त करना है। जन-जागृति हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसे कायम रखना है। पारस्परिक वैर-वैमनस्यका उदय हमारी सबसे बड़ी क्षति है। हमें इस क्षतिको जल्दी ही पूरा करना है। जबतक हम असहयोगके उग्र पक्षको स्थगित नहीं करते, ऐसा नहीं हो सकता। अगर अपरिवर्तनवादी लोग किसी लायक हैं तो उनका कर्त्तव्य अपने अहंभावको मिटाकर चुप-चाप काम करते जाना है। उन्हें शक्ति अथवा पद या नामके लिए झगड़ना नहीं चाहिए। परिणाम कुछ निकले या न निकले, उन्हें चुपचाप काम करते जाना चाहिए। अगर स्वराज्यवादी और लिबरल लोग कांग्रेसमें शामिल हो जायें तो उन्हें अपने इन सहयोगी भाइयोंकी मर्जीपर चलना चाहिए।

इसे करनेका तरीका दिखानेका सबसे अच्छा उपाय यह है कि मैं स्वयं यह करके दिखाऊँ। इसलिए अभी तो मैं स्वराज्यवादियों और लिबरलोंके सामने अपनी सामर्थ्य-भर अधिकसे-अधिक समर्पण करनेमें लगा हुआ हूँ। अपरिवर्तनवादियोंके सामने समर्पित करनेको मेरे पास कुछ है नहीं; क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनसे मेरा कोई मतभेद नहीं है।

मुझे किसी पक्ष-विशेषके आदमीके रूपमें नहीं रहना है और मैं अपरिवर्तनवादियोंको भी ऐसा ही करनेकी सलाह देता हूँ।

स्वराज्यवादियोंके सामने जो कठिन कार्य है, उसमें हमें बाधा नहीं डालनी है। जब कभी ऐसा प्रसंग आये कि अपरिवर्तनवादियोंके लिए तीव्र संघर्ष किये बिना बहुमतको अपने पक्ष में करना असम्भव हो जाये, उन्हें खुशी-खुशी और शोभनीय ढंगसे स्वराज्यवादियोंके सामने झुक जाना चाहिए। जहाँ-कहीं वे सत्ता या पदपर