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२२२. हिन्दू और मुसलमान

एकता सम्मेलन तो एकताका आरम्भ-काल ही है। उसके प्रस्ताव अपूर्ण, उसम उपस्थित लोग अपूर्ण, सो उसका आरम्भ भी अपूर्ण ही रहा है। फिर भी यह सम्मेलन बहुत महत्त्वपूर्ण था। इसकी जड़ें गहरी जायेंगी। इसके रोपे कोमल वृक्षकी रक्षा करना, उसे पानी सींचना हमारा काम है।

गहरा विचार करनेपर हमें दिखाई देगा कि यह जटिल प्रश्न एक ही तरहसे हल हो सकता है। कोई कानूनको अपने हाथोंमें न ले। मैं मानता हूँ कि वह सामनेवाला घर मेरा है, सिर्फ इतनेसे ही उसपर कब्जा करके बैठ जाना जंगलीपन है। मुझे अपना हक पंचायतमें या अदालतमें साबित करना चाहिए और पंचके अथवा अदालत के निर्णयको शिरोधार्य करना चाहिए। जहाँ इस नियमका पालन नहीं होता, उस समाजका नाश होता है। यदि दोनों पक्ष इस सुनहले नियमके अधीन हो जायें तो फिर कुछ कहने की जरूरत ही नहीं रहती। परन्तु जहाँ एक पक्ष मार-पीट ही करना चाहता हो वहाँ भी यदि दूसरा पक्ष उक्त नियमका पालन करे तो इतना काफी है। अन्तमें उस पक्षकी हानि नहीं होगी, यह निश्चित बात है। फर्ज कीजिए कि मेरे घरपर एक तीसरे ही शख्सने कब्जा कर लिया। इस हालतमें किसी भी सुव्यवस्थित समाजमें पंच लोग मुझे मेरा हक फिरसे वापस दिलायेंगे ही। इससे घटिया किस्म के समाजमें यह काम अदालत करती है। पंचोंका दण्ड होता है लोक-मत, अदालतका दण्ड होता है कैदखाना या बन्दूक। हर प्रकारकी व्यवस्थामें मारपीट न करनेवालेको अपना हक फिरसे वापस मिल सकता है।

जबतक हम इस अनिवार्य नियमके अधीन न होंगे तबतक हमारे बीच झगड़े होते ही रहेंगे, इसमें कोई शंका न करे। और तबतक ऐसे झगड़े होते रहेंगे, तबतक शान्तिपूर्ण उपायोंके द्वारा हम कभी स्वराज्य न ले सकेंगे। इसे स्वयंसिद्धि-सा ही समझिए। हो सकता है कि हिन्दू और मुसलमान दोनोंमें से किसीको भी स्वराज्य दरकार न हो और स्वराज्यसे ज्यादा पसन्द झगड़े ही हों। ऐसे लोगोंको तो समझाना ही बेकार है। परन्तु जो स्वराज्य चाहते हैं उनका काम तो पूर्वोक्त नियम स्वीकार किये बिना चल ही नहीं सकता। हम लोगोंको, जिन्हें कि स्वराज्यके बिना जीवित रहना कठिन है, मारपीट के जंगली कानूनके अधीन कभी भी नहीं होना चाहिए।

परन्तु पंचायतमें या अदालतमें जानेके दृढ़ निश्चयके बावजूद कुछ ऐसे प्रसंग आ सकते हैं, जब मनसे या बेमनसे मार-पीटमें शरीक होना अथवा भाग जाना या शान्तिके साथ मृत्युको स्वीकार करना जरूरी हो जाता है। मैं भजन-कीर्तन करता हुआ मसजिदके सामनेसे निकलूँ और मुझपर कोई हमला करे तो मुझे क्या करना चाहिए? मेरे ही घरमें कोई कब्र बनाने लग जाये तो मुझे क्या करना चाहिए अथवा कोई गरीब मुसलमान खानगी तौरपर अपने घरमें गो-वध करे और उसपर हिन्दू