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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोग टूट पड़ें तो उसे क्या करना चाहिए? इन तीनों मिसालोंमें इतना समय नहीं है कि कानूनकी राह देखी जाये। तब सम्बन्धित लोगोंको क्या करना उचित है?

यदि वे शान्तिके साथ मरना जानते हों तो यह उत्तम उपाय है। पंचोंसे निर्णय करानेका उपाय भी इस उपायकी बराबरी नहीं कर सकता। परन्तु सभी लोग ऐसा बलिदान नहीं कर सकते। तब क्या उन्हें मौकेपर से भाग जाना चाहिए? यह तो कायरका लक्षण है। तब आम तौरपर एक ही इलाज रह जाता है। ऐसे समय उन लोगोंको मारपीट करके भी अपनी रक्षा करनी ही चाहिए। सुव्यवस्थित तन्त्रमें यह हक हरएक व्यक्तिको है और होना भी चाहिए।

परन्तु ऐसे अवसर क्वचित् ही आते हैं। अच्छे आदमीकी सौमें शायद एक-आध बार ही ऐसी कसौटी होती है। सामान्यतया देखा यह गया है कि जो आदमी शान्त बैठा रहता है, उसकी कसौटी ईश्वर नहीं करता। यदि हम निष्पक्ष दृष्टिसे देखेंगे तो सौमें निन्यानवे उदाहरण हमें ऐसे दिखाई देंगे जहाँ कि मारपीटमें दोनों पक्ष थोड़े-बहुत जिम्मेदार होते हैं। इन तमाम मिसालोंमें यदि एक पक्ष भी दोष रहित रहनेका निश्चिय करे तो रह सकता है और जो ऐसा दोष-रहित रह जायेगा उसीकी जीत समझिए।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २६-१०-१९२४

२२३. तार: वाइसराय के निजी सचिवको[१]

२७ अक्तूबर, १९२४

वाइसरायके निजी सचिव
वाइसरीगल कैम्प

तारके लिए धन्यवाद। मेरा विचार दिल्लीसे अपने साथियोंके साथ १ नवम्बरको अथवा उसके बाद यथासम्भव शीघ्र रवाना होनेका है। उसके बाद मैं दो या तीन दिन रावलपिंडीमें ठहरकर कोहाट जाना और वहाँ तीन-चार दिन रहना चाहता हूँ।

गांधी

अंग्रेजी प्रति ( एस० एन० १५९१२ ) की फोटो-नकलसे।

  1. यह वाइसरायके निजी सचिवके २६ अक्तूबरके निम्न तारके जवाब में भेजा गया था: "आपने अपने १६ अक्तूबरके पत्रमें यह नहीं बताया है कि आप कोहाट कब जाना चाहते हैं। कृपा करके तार द्वारा अपना उत्तर भेजें।"