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राष्ट्रवाद के सम्बन्धमें सचाई

योजनके लिए किसी विदेशी सिंडीकेटको दस करोड़ रुपया देती है [और इसलिए उसपर उतने पौंडका कर्ज हो जाता है] तो यह स्वराज्य सरकारके लिए सिर्फ न्याय ही नहीं बल्कि कर्तव्य-रूप होगा कि वह उस कर्जको अदा करनेसे इनकार कर दे। दरअसल तो मैं शायद एक बातमें गया प्रस्तावसे एक कदम और आगे बढ़ जाता हूँ। मैं न केवल इस प्रस्तावके दिनसे सरकार द्वारा किये गये लेन-देनकी जाँच करनेकी माँग करूँगा, बल्कि जिसमें अनैतिकताकी गंध आती जान पड़ेगी, ऐसे हर लेन-देनकी जाँच करनेकी माँग करूँगा। क्योंकि यह सरकार दावा करती है और यह माना जाता है कि यह न्यायके साथ, ईमानदारीसे और भारतके करोड़ों लोगोंके प्रति न्यासीके रूपमें व्यवहार करती है। अतः जहाँ न्यासीके कर्त्तव्यका भंग हुआ हो या व्यवहारमें कोई दूसरी अशुद्धता पाई जाये वहाँ चिर भोगाधिकारके आधारपर उस संरक्षणका दावा नहीं किया जा सकता जो कि ईमानदारीकी भावनासे किये गये लेन-देनको प्राप्त होता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २७-११-१९२४

३१४. राष्ट्रवादके सम्बन्ध में संचाई[१]

भारतीयोंकी नयी पीढ़ीके लिए जिनके सामने महायुद्धके बाद विश्वकी बदली हुई स्थिति आ खड़ी हुई है, स्पष्ट ही यह बात अत्यन्त महत्त्व रखती है कि वे उस अनुभवके प्रकाशमें पश्चिमी राष्ट्रवादकी सचाई और पूर्वपर उसे लागू करनेके बारेमें नये सिरेसे विचार करें।...

सचाई यह है कि मलाया और बर्माकी अपनी हालकी यात्राओंके दौरान मैंने सभी ओर भारतीयोंके प्रति---जैसी विदेशियोंके प्रति होती है-- शत्रुताकी भावना जागती हुई देखी।...मेरे लिए इसका अर्थ था कि यूरोपीय ढंगके राष्ट्रवादके पीछे केवल यूरोप ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया पागल हुई जा रही है।...

महात्मा गांधीके उपवाससे पहले ही इन चीजोंने मुझे उद्विग्न कर दिया था; लेकिन उपवासके दौरान मेरे मनमें यह खयाल भी आया कि जिस प्रकार यूरोपमें विरोधी धर्मोके बीच चलनेवाले युद्धको परिणति विरोधी राष्ट्रोंके बीच युद्धमें हुई थी, उसी प्रकार अगर हम पहलेसे ही सचेत नहीं हुए तो हिन्दू-मुसलमानोंके बीच जो तनाव है वह भी वैसा ही रूप ले सकता है।...

...शोककी बात है कि यूरोपमें श्रम और पूँजीके बीच जैसा संघर्ष चल रहा है, वैसा ही वर्ग-संघर्ष हमें मानना पड़ता है कि भारतमें है। 'अस्पृश्यता' से एक वर्ग और दूसरे वर्गके बीच अत्यन्त संकीर्ण और नृशंस शत्रुभावना सूचित होती है।

  1. एन्ड्यूजके इस लेखसे जिसपर गांधीजीने अन्तमें अपनी टिप्पणी दी है, कुछ अंश ही उद्धृत किये गये हैं।