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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुसलमान--चुने गये। जातिगत मामलोंमें उनकी निष्पक्षता प्रमाणित हो चुकी थी। संगठनके लिए विद्यार्थियोंमें से सदस्य बनानेका काम उन्हें दिया गया। साथ ही साथ, इसी तरह प्रत्येक मुहल्ला संगठित किया जा रहा है। कलसे में हरएक मुहल्लेमें जानेवाला हूँ और साथ ही मैं विद्यार्थियोंके दलोंको खास-खास समयपर आनन्द-भवनमें बुलाकर उनसे बातें करूँगा। जब यह प्रारम्भिक काम हो जायेगा, तब में सारे विद्यार्थी-वर्गसे एक साथ मिलूँगा और एक दो सार्वजनिक सभाओंमें भाषण करूँगा। यदि समय मिला तो मैं लखनऊ जाकर भी ऐसा ही करूँगा।

आप देखेंगे कि उपर्युक्त कार्यक्रममें ठोस कामकी योजना है और इसके अन्दर बाहरी दिखावेकी बिलकुल स्थान नहीं है जो अभाग्यवश आजकल हमारे सार्वजनिक कामोंका एकमात्र रूप रह गया है। यदि सच पूछिए तो अब सभा-सम्मेलनोंकी ओरसे मेरा मन बिलकुल हट गया है, ये सिर्फ चन्दरोजा दिखावे हैं जिनसे कभी कोई भी वास्तविक फल नहीं निकलता। नागपुरके झगड़ोंके फैसले का समय आ गया है और नागपुरसे आये हुए पत्रोंसे मालूम होता है कि इसकी सख्त जरूरत है कि पंच ( मैं और मौ० अबुल कलाम आजाद ) वहाँ मिलकर बेलगाँव कांग्रेसके पहले यह झगड़ा तय कर दें। इसके लिए १५ तारीख निश्चित करनेका प्रस्ताव करते हुए, मैंने मौलाना अबुल कलाम आजादको कलकत्ते दो तार दिये हैं, परन्तु उनका जवाब नहीं आया है।

मैंने आपको इतना इसलिए लिखा है कि मैंने अपने लिए जो काम तजवीज किया है उसका आपको ठीक-ठीक खयाल हो जाये। मुझे आशा है कि आप मुझसे इस बातमें सहमत होंगे कि इस हालतमें मेरा पंजाब जाना उतना लाभदायक न होगा।

पण्डितजीके समान ही मैं भी इन सम्मेलनोंसे घबराता हूँ। इसलिए नहीं कि वे हमेशा बेकार ही होते हैं। हमारे आन्दोलनके क्रममें एक मंजिल ऐसी थी जब उनकी बड़ी जरूरत थी। परन्तु सम्मेलनोंमें आजकल जो हो रहा है उसे देखते हुए तो यही कहना पड़ता है कि उनकी उपयोगिता प्रायः कुछ नहीं रह गई है। यदि उनसे कोई और नुकसान न हो तो भी समय और रुपयेका अपव्यय तो होता ही है। इनके द्वारा सार्वजनिक सेवाका जो भाव जागृत हुआ है उसे कार्यके रूपमें सुदृढ़ करने के लिए छोटी-छोटी समितियाँ ही अधिक उपयोगी होंगी। ये समितियाँ तभी उपयोगी हो सकती हैं जब उनके सदस्य आपसमें मेल-मिलाप रखनेवाले, सर्व-सामान्य प्रजाजनकी इच्छाओंका ध्यान रखनेवाले तथा अपने ठोस और अमली कामके द्वारा उनसे अपना सम्बन्ध बनाये रखनेवाले हों। इन सम्मेलनोंका त्याग, हम जनताकी विमनस्कता वा मन्दताके कारण नहीं, बल्कि इसलिए करें कि हम जनताको उनके बजाय और ज्यादा उपयोगी काममें लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए, यह बड़ी नासमझीकी बात होगी कि हम खादीके काममें लगे हुए लोगोंको बुलाकर उनसे ऐसे