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मेरी पंजाब-यात्रा

थे कि मौलाना अबुल कलाम आजाद ही सबसे योग्य सभापति होंगे और यदि हम लोग उन्हें राजी न कर सके तो उस हालतमें मैं उनका स्थान ग्रहण करूँगा, पर इसी बीच मुझे अपनी पुत्रवधुकी गम्भीर बीमारीकी सूचना मिली और मुझे फौरन एक प्रसूति विशेषज्ञ साथ लेकर जाना पड़ा। मौलाना साहब मेरे साथ ही सभाभवनसे बाहर आये और मैंने उनसे साफ कह दिया था कि अब मैं पंजाब और नागपुरके कार्यक्रम पूरे नहीं कर सकूँगा। मैंने उनसे यह भी कहा था कि अब आपको ही पंजाब सम्मेलनका सभापति होना चाहिए और नागपुरके लिए कोई दूसरा समय ठीक कर लेना चाहिए। वहाँसे चलते समय मैं ऐसा समझता था कि महात्माजीसे इस विषयपर बातचीत करके यदि वे स्वयं सभापति होनेपर राजी न हों तो इस काम के लिए किसी औरको ठीक करेंगे। यहाँ पहुँचनपर हम लोगोंने एक दिन बड़ी चिन्तामें काटा। नवजात शिशुको बचानेकी कोशिश करते रहे, परन्तु आखिर बच्चा जाता रहा। बच्चेकी हालत साधारणतः अच्छी थी, परन्तु ज्वर होनेके कारण पूरी तरह सन्तोषजनक न थी। इसी गड़बड़ीमें मुझे कलकत्तेके समाचार मिले जिनमें वहाँ होनेवाली घटनाओंकी सूचना दी गई थी और मुझे खबर मिलते ही तुरन्त रवाना होनेके लिए तैयार रहनेको कहा गया था।

ज्यों ही जवाहरकी पत्नीके सम्बन्धमें कोई भय न रहा, मैंने प्रयागके हिन्दू-मुसलमानोंके झगड़ोंकी ओर अपना ध्यान फेरा। मैंने ऐसा निश्चय किया कि जबतक मुझे कलकत्तेसे सूचना न मिले तबतक मैं अपनी सारी शक्ति इसी सवालको हल करनेमें लगाऊँ। स्थिति मुझे बहुत ही बुरी मालूम पड़ी। बहुत दिनों तक शहर और सूबेसे अलग रहने के कारण मेरे ऊपर चारों ओरसे कड़ी शिकायतोंकी बौछार हो रही थी। मैंने लोगोंको विश्वास दिलाया कि मैं उनके लिए पूरे पन्द्रह दिन काम करके उनकी काफी क्षति-पूर्ति कर दूँगा।

मैं अपने इस आश्वासनको पूरा करनेमें फौरन ही जुट पड़ा। पहले जब मैं अपनी यात्राओंमें थोड़ी-थोड़ी देरके लिए यहाँ आया था तब नामधारी अग्रगण्य हिन्दुओं और मुसलमानोंसे मेरा जी ऊब उठा था। इस बार मैंने ऊपर से काम करनेके बदले नीचेसे ही काम शुरू करनेका निश्चय किया। मैं बहुत समयसे सोचता आ रहा था कि एक हिन्दू-मुस्लिम संगठन खड़ा किया जाये; मैंने प्रयागसे ही इस कामका आरम्भ करनेका विचार किया। इस दिशामें मैंने सबसे पहले विश्वविद्यालयके अध्यापकों और विद्यार्थियोंसे सम्पर्क स्थापित किया। विश्वविद्यालयमें एक संघ है। उसकी एक शाखा सामाजिक सेवाके लिए है। दोनोंके काफी सदस्य हैं। अध्यापकोंके साथ मिलनेपर यह निश्चय किया गया कि समाज सेवा विभागको ही हिन्दू-मुस्लिम संगठनका केन्द्र बनानेका प्रयत्न किया जाये। इसके अनुसार एम० ए० वर्गके दो विद्यार्थी---एक हिन्दू और एक