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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२. किसी भी सम्प्रदाय या पंथके साथ रिआयत न होनी चाहिए अर्थात् किसीको भी अपनी संख्याके अनुपातसे अधिक प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार न होना चाहिए।

३. इस सिद्धान्तके अनुसार विधान-सभाओंके लिए जो व्यवस्था तय पाई जाये वही स्थानीय संस्थाओंके लिए भी लागू होनी चाहिए।

४. भिन्न-भिन्न सम्प्रदायोंको सरकारी नौकरियाँ उनकी संख्याके हिसाब से मिलनी चाहिए; अलबत्ता, इसमें उम्मीदवारोंकी कार्य-क्षमताका खयाल अवश्य रखा जाये। इसलिए यदि किसी विभागमें किसी जातिको एक भी पद न मिला हो तो आगे जितनी नियुक्तियाँ हों, आया वे नई हों या खाली जगहोंको भरनेके लिए हों, वे उसी जातिमें से होनी चाहिए ताकि उसके संख्याबलके अनुसार उसे समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाये। दूसरे शब्दोंमें इसका मतलब यह है कि किसी वर्ग-विशेषके साथ खास रिआयत या मेहरबानी न होनी चाहिए। उपस्थित मुसलमान सज्जनोंने यह स्पष्ट कर दिया कि हम सिर्फ अपनी व्यक्तिगत राय दे रहे हैं। अपनी इन बातोंसे किसी औरको नहीं, केवल अपनेको ही बद्ध करते हैं और यदि कोई जाति किसी खास रिआयत का दावा करेगी तो वे अपनी रायपर पुनर्विचार कर सकेंगे।

५. इसका जो कोई उपाय तय हो वह ऐसा हो जो सारे देशपर घटित हो सकता हो और जिसका निश्चय सारे देशकी सहमति से हुआ हो।

सिख भाइयोंका यह कहना था कि पंजाबमें हमारी एक खास स्थिति और महत्त्व है, अतः हमारे साथ विशेष व्यवहार होना चाहिए; अर्थात् यदि पंजाब में जातिगत प्रतिनिधित्वकी प्रणाली चलाई जाये तो हमें अपने संख्या-बलके आधारपर अधिक प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार मिलना चाहिए। उन लोगोंने कहा कि यदि जातिगत प्रतिनिधित्व बिलकुल ही छोड़ दिया जाये और यदि एक भी सिख विधान-सभाओंमें या और किसी संस्थामें न गया तो भी हमें सन्तोष रहेगा।

हिन्दू लोग चाहते थे कि जातिगत प्रतिनिधित्व कतई नहीं होना चाहिए और यदि हो भी तो निर्वाचक-मण्डल संयुक्त रहना चाहिए। हिन्दू लोग किसी एक बात पर स्थिर नहीं हो पाये। पंजाबके हिन्दुओंको यह डर मालूम होता था कि मुसलमानोंकी इस माँग मूलमें कोई गहरा दाँव-पेच है। असलमें उनके मनमें इस तरहका एक अस्पष्ट भय है कि यदि पंजाबके शासन-प्रबन्धमें मुसलमानोंका बहुमत हुआ तो लड़ाकू मुसलमान जातियोंके नजदीक ही रहनेके कारण, खासकर पंजाबको और सारे भारतको बड़ा भारी खतरा रहेगा।

वहाँकी भिन्न-भिन्न जातियोंकी यथार्थ स्थिति यह है। मैंने उसे भरसक संक्षेपमें और ठीक-ठीक देनेका प्रयत्न किया है। ऐसी हालतमें किसी निर्णयपर जल्दी पहुँचनेके लिए जोर देना सम्भव न था। मैं यह आशा कर रहा हूँ कि बेलगाँवमें भिन्न-भिन्न जातियोंके प्रतिनिधियोंका इससे ज्यादा बा-जाब्ता सम्मेलन होगा और वहाँ सबकुछ विचारकर इस टेढ़े सवालका एक सर्वसामान्य हल सारे राष्ट्रके लिए निकल आयेगा।