पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वविद्यालयके दीक्षान्त समारोहमें[१] सफल विद्यार्थियोंको उपाधियाँ बाँटनेमें गया। कुलपतिको हैसियतसे लाला लाजपतरायने विद्यार्थियोंसे हिन्दुस्तानीमें यह शपथ लिवाई कि "मैं शपथके साथ प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपने जीवनमें ऐसा कोई काम न करूँगा जिससे मेरे धर्म और देशको नुकसान पहुँचे।" उपाधि पानेवाले विद्यार्थियोंमें एक लड़की और एक मुसलमान भी था। यह रस्म बहुत प्रभावपूर्ण थी। परन्तु उपाधि-वितरण करते समय मैं अपने इन विचारोंको नहीं रोक सका कि मेरी स्थिति वैसी ही है जैसे गोल सुराखमें किसी चौकोर वस्तुकी होती है। शिक्षाके विषयमें मेरे विचार क्रान्तिकारी हैं, इस कारण समालोचकोंको उनका अजीब मालूम होना ठीक ही है। मैं स्वराज्यकी दृष्टिसे ही राष्ट्रीय शिक्षाका विचार कर सकता हूँ। इसलिए मैं तो यह चाहूँगा कि विद्यालयोंके विद्यार्थी भी कताईकी कला और उसकी बाकी सारी प्रक्रियाओंको भी अच्छी तरह जाननेकी ओर ध्यान दें। उन्हें खादीके अर्थशास्त्रका तथा उसके साथकी अन्य बातोंका भी ज्ञान होना चाहिए। उन्हें यह जानना चाहिए कि एक मिलकी स्थापनामें कितना समय और कितनी पूँजी लगेगी। उन्हें जानना चाहिए कि मिलोंका बेहद बढ़ जाना सम्भव है या नहीं और उसमें क्या-क्या रुकावटें आ सकती हैं। उन्हें यह भी जानना चाहिए कि धनका वितरण मिलोंके द्वारा कैसे होता है और हाथ कताई और बुनाई द्वारा किस तरह। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि कताईको और इस तरह भारतीय वस्त्रोत्पादनको किस तरह नष्ट किया गया। उन्हें यह स्वयं समझना चाहिए और दूसरोंको समझा सकना चाहिए कि अगर भारतके लाखों किसानोंकी झोपड़ियोंमें कताई होने लगे तो उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्हें यह जानना चाहिए कि हमारी इस गृह-कलाका पूर्ण पुनर्जीवन किस तरह हिन्दू और मुसलमानोंके टूटे दिलोंको जोड़कर एक कर सकता है। ये विचार या तो समयके पीछे या आगे हैं। लेकिन इस बातका कोई विशेष महत्त्व नहीं कि वे समय से आगे हैं या पीछे। मैं तो यह जानता हूँ कि एक-न-एक दिन सारा शिक्षित भारत उन्हें अपनायेगा।

मार्शल लॉके कैदी

पाठकको श्री रतनचन्द और बुग्गा चौधरीका स्मरण होगा। वे दोनों मार्शल लॉके कैदी थे। उन्हें फाँसी की सजा दी गई थी और उनकी ओरसे पण्डित मोतीलालजीने प्रिवी कौंसिलमें अपील की थी। पाठकों को यह भी याद होगा कि अपीलके खारिज हो जानेपर भी फांसीकी सजा, आजन्म कारावास दण्डमें परिवर्तित कर दी गई थी। श्री बुग्गा चौधरी अण्डमानसे मुल्तान जेल लाये गये हैं पर मैं सुनता हूँ कि रतनचन्द अब भी अण्डमानमें ही रखे गये हैं। श्री बुग्गाकी सास मुझसे मिलने आई थी। उन्होंने मुझसे कहा कि श्री बुग्गा आंत्रवृद्धि और बवासीरसे पीड़ित हैं और इधर तीन महीनेसे उन्हें बुखार भी आ रहा है। असहयोगके ज्वारके दिनोंमें मैं कहा करता था कि ये कैदी जल्द ही छोड़ दिये जायेंगे। इस बार मुझे बड़ा दुःख

  1. देखिए "दीक्षान्त भाषण: पंजाब कौमी विद्यापीठमें", ६-१२-१९२४।