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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शक्ति आवश्यकता

इसलिए कांग्रेसने जो काम अपने हाथमें लिया है उसके योग्य बननेके लिए उसे ऐसी शक्ति अर्जित करनी चाहिए, जिसके बलपर वह अपनी माँगें स्वीकार करा सके। यह शक्ति हम तभी अर्जित कर सकते हैं जब हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी आदि एक हो जायें; जब स्वराज्यवादी, अपरिवर्तनवादी, लिबरल, होमरूलवाले, मुस्लिम लीग और दूसरे तमाम दलोंके लोग एकताके सूत्रमें बँध जायें। अगर हम सब मिलकर सिर्फ एक स्वरमें बोल सकें और ठीक-ठीक समझ लें कि हम क्या चाहते हैं, तो हमारा मार्ग सुगम हो जायेगा। अगर हम अपनेमें विदेशी कपड़ोंके पूर्ण बहिष्कारकी शक्ति विकसित कर लें तो हमारा रास्ता सुगम हो जाये। और तब यह माना जा सकता है कि अब हममें वह शक्ति आ गई है, जिसके बलपर हम अपनी बातें मनवा सकते हैं।

मेरी आस्था

अब मैं अपनी आस्थाकी बात बता दूँ। एक कांग्रेसीकी हैसियतसे कांग्रेसको ज्योंका-त्यों कायम रखनेके लिए मैं असहयोगको मुल्तवी रखनेकी सलाह दे रहा हूँ, क्योंकि मैं देखता हूँ कि राष्ट्र अभी इसके लिए तैयार नहीं है। लेकिन एक व्यक्तिकी हैसियतसे मैं तबतक ऐसा नहीं कर सकता---और न करूँगा ही---जबतक कि यह सरकार जैसीकी-तैसी बनी हुई है। मेरे लिए यह महज एक कार्य-नीति (पॉलिसी) की बात नहीं, बल्कि अडिग आस्थाकी बात है। असहयोग और सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह नामक एक ही वृक्षकी अलग-अलग शाखाएँ हैं। यह मेरा कल्पद्रुम---जाम-ए-जाम---है। सत्याग्रह क्या है? सत्यकी खोज। और ईश्वर ही सत्य है। अहिंसा वह ज्योति है, जो उस सत्यके दर्शन कराती है। मेरे लिए स्वराज्य उसी सत्यका एक अंग है। इस सत्याग्रहने दक्षिण आफ्रिका, खेड़ा या चम्पारनमें मुझे निराश नहीं किया। मैं ऐसे और भी बहुतसे प्रसंग गिना सकता हूँ जब इसने, इससे जितनी भी आशाएँ की गई थीं, सब पूरी कीं। इसमें किसी किस्मकी हिंसा या घृणाभावके लिए जगह नहीं है। इसलिए मैं अंग्रेजोंसे नफरत नहीं कर सकता और न करूँगा। पर साथ ही मैं उनके जुएको भी गवारा नहीं कर सकता। हिन्दुस्तानके सिरपर अंग्रेजी तौर-तरीके लादने की नापाक कोशिशका मुकाबला मैं मरते दमतक करूँगा। लेकिन मैं अहिंसाके द्वारा ही उसका सामना कर रहा हूँ। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि हिन्दुस्तान अहिंसाके हथियारसे मौजूदा अंग्रेज शासकोंका मुकाबला कर सकता है। हमारा यह प्रयोग असफल नहीं हुआ है। उसमें सफलता जरूर हुई है, लेकिन उस हदतक नहीं कि जिस हदतक हम चाहते और उम्मीद रखते थे। पर मैं निराश नहीं होता। बल्कि इसके विपरीत मेरा तो विश्वास है कि भारत निकट भविष्यमें अपना स्वत्व पा लेगा और यह सिर्फ सत्याग्रहके द्वारा ही सम्भव होगा। सत्याग्रहको स्थगित करनेका जो प्रस्ताव किया गया है, वह भी इस प्रयोगका ही अंग है। अगर मेरा बनाया यह कार्यक्रम पूरा किया जा सके तो असहयोगको फिरसे शुरू करनेकी बिलकुल जरूरत न होगी। पर अगर यह कार्यक्रम न चला तो किसी-न-किसी रूपमें चाहे कांग्रेसके नेतृत्वमें या उसके नेतृत्वसे बाहर असहयोग