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समापन-भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

नवाँ रामदेव ठाकुर, दसवाँ सुभान अली और ग्यारहवाँ भी आन्ध्रके लक्ष्मी भाई अन्ताको दिया गया।

मुझे यह देखकर अफसोस होता है कि एक ही मुसलमान भाईने पदक पाया है। एक जमाना था कि बारीक सूत कातनेवाली मुसलमान औरतें ही थीं। लेकिन इसमें हमने यह भी देखा कि ११ में से चार पदक बहनोंके हाथ गये हैं, बाकी भाइयोंके हाथ। एक भाईने लिखा है कि वे उस अस्पृश्य भाईसे हाथ मिलाना चाहते हैं जो अभी बोले थे। वे दिल्लीके प्रतिनिधि हैं। जो भेंट करना चाहें, कर लें। ८ बजे स्टूडेंट सभा, और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी कल ११ बजे होगी। अब जिनका स्वर्गवास हो गया है, उसमें मौलाना सर साहबका भी जिक्र होना चाहिए। अभी मैंने मौलाना मुहम्मद अली साहबसे पूछा था। उनका स्वर्गवास हालमें ही नहीं हुआ था। वह तो कोकोनाडामें जब जलसा चल रहा था, तब जलसेके पहले दिन हुआ था। जितने भाई आये हैं, उनके लिए अफसोस जाहिर करना उनका काम है। अच्छा, अब यह सब हो गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३९ वें अधिवेशनकी रिपोर्ट।

३९६. समापन भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

२७ दिसम्बर, १९२४

अधिवेशनको कार्यवाही समाप्त करते हुए अध्यक्षने पहले हिन्दीमें और फिर अंग्रेजीमें अत्यन्त जोशीला भाषण दिया:

अब मैं भाइयोंसे इतना कहना चाहता हूँ कि मैं आपका जितना अहसान मानूँ उतना कम है। मैं नहीं जानता कि कोई भी सभापति, कोई भी सदर, जो मुहब्बत आपने मुझे बताई है, उससे ज्यादाकी उम्मीद कर सकता है। जो काम मैं आपसे लेना चाहता था, वह तुरन्त आपने मुझे [ करके ] दे दिया। जब मैंने कहा कि आप खामोश रहें तो, आप खामोश रहे; जो व्याख्यान देना चाहा, सुन लिया---आपने कहा आप लिखा व्याख्यान चाहते हैं। मैंने कहा--क्षमा करें, तो आपने फिर उसके लिए नहीं कहा। जिस तरह यहाँ आपने शान्तिसे, आवाज किये बिना काम किया है, राय दी है, उसी तरह सब्जेक्ट्स कमेटी [ विषय समिति ] में भी कोई भी हरकत [ गड़बड़ ] नहीं हुई। हकीकत तो यह है कि हरकतकी बात तो तब हुई थी कि जब चरखेका बम्ब आपके बीचमें फेंका था। आपने कोई एतराज यहाँ नहीं किया। सब्जेक्ट्स कमेटी ( विषय समिति ) में भी बड़े अदबसे बरताव किया। इसके लिए, मैं मानता हूँ कि कोई मेरा पूर्वजन्मका पुण्य होगा कि मेरे भाइयोंकी मेरे ऊपर यह दया है। मैं यह चाहता हूँ कि जो यह कृपा मेरेपर आपने बताई है, भारतवर्षपर बतायें, क्योंकि मैं जिन्दा रहना चाहता हूँ तो भारतवर्षके लिए और मरना चाहता हूँ तो भारतवर्ष के लिए ही। खुदाके हुक्मके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। परन्तु हरएक आदमीको अख्तियार है कि