पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह खुदासे माँगे; जैसे एक बालक अपने पितासे माँग लेता है, वैसे खुदासे माँगे। मैंने तो यह भी देखा है कि वह मुझको जब माँगता हूँ दे भी देता है। जितना खुदाने निश्चित किया है, वह मिट नहीं सकता।

इसलिए मेरी आप भाइयोंसे प्रार्थना है कि आप भारतवर्षकी सेवाके लिए कटिबद्ध हो जायें और जो प्रतिज्ञा आपने ली है उसका पालन करें। मुझे मालूम है कि मैंने सभापतिका स्थान लिया और आप भाई-बहनोंने मुझे मुहब्बत दी। मैं भी चाहता हूँ कि सबके मुँहसे [ अपनी ] बड़ाई सुनूँ--लेकिन इससे उद्देश्य सिद्ध नहीं हो सकता। वह तब होगा जब आप जो प्रतिज्ञा करें उसके अनुसार काम करें। मैं यह नहीं मानता कि ये सब काम हमारी शक्तिसे बाहर हैं---तीसरा काम जो हम करना चाहते हैं या चौथा या पाँचवाँ काम---इनमें से कोई भी ऐसा नहीं।

जब मैं भाई भोपटकरका व्याख्यान सुन रहा था तो मुझे सानन्दाश्चर्य हुआ। जब उन्होंने कहा कि क्या आप हिन्दू धर्मका नाश करना चाहते हैं कि जो मनुष्य हैं उनको अस्पृश्य समझते हैं, तब मुझे बहुत आनन्द हुआ। और तीन शास्त्री महाशयोंने अभी आपको सुना दिया कि हिन्दू धर्ममें हम जैसा मानते हैं वैसा अस्पृश्यता की कोई बात नहीं। क्या यह वही बात है कि हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरेको दुश्मन न समझें, और भाई-भाई समझें? आपने नहीं सुना कि भाई शौकत अलीने क्या कहा है? लाला लाजपतरायने क्या कहा है? भाई जफर अली खाँने एक एतराज किया था---मैं कोई एतराजकी बात नहीं समझता---लेकिन वह भी हिन्दुस्तानके दुश्मन नहीं हैं। आप किसीको दुश्मन न मानें। आपके दिलमें यही होना चाहिए कि हम दुश्मनको भाई बना लेंगे।

लालाजीने एक सिद्धान्त सुना दिया कि सारा प्रश्न मानव जातिका है। किसी एक धर्मतक यह बात मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि हिन्दू अगर पागल बना तो क्या कोई मुसलमान उसको गाली न दे? मुसलमान रामचन्द्र और कृष्णको गाली दें तो हिन्दू उसके पैगम्बरको गाली न दें? अगर आप इसका फैसला माफ करके नहीं करना चाहते तो अदालतमें, पंचायतमें जाइये। मैं असहयोगी हूँ, मगर कोई मुसलमान कृष्णको गाली दे तो मैं कहूँगा अदालतमें जाओ, मगर लड़ो मत। इसमें लड़नेकी कोई बात नहीं है। इस सिद्धान्तकी स्वीकृति के लिए बहुत समयकी जरूरत नहीं है। हम लोगोंको इस स्वराज्यके लिए इतना बुखार होना चाहिए, हमारे दिलोंमें बड़ी आग जलनी चाहिए। जब भोपटकर बोल रहे थे, तब मुझे लोकमान्यकी याद आ गयी। वे स्वराज्यकी प्रतिमा थे। उनके विषयमें एक बड़ी बात सुनी है। उनकी धर्म-पत्नीका स्वर्गवास हुआ तो उस वक्त भी वे अपनी स्वराज्य सेवामें लगे हुए थे। अगर ऐसा ही ज्वालामुखी हमारे दिलोंमें प्रगट हो जाये तो क्या तीसरा और क्या चौथा, हम क्या नहीं कर सकते? कांग्रेसमें आनेपर खद्दर पहनें, यह क्या कोई बड़ी बात है? हम विदेशी कपड़े छोड़ दें, यह भी कोई बड़ी बात है? आज मैं उनको जलानेकी बात नहीं करता। मैं वही आदमी हूँ कि जिसने सन् इक्कीसके शुरूमें विदेशी कपड़े जलवाये थे। लेकिन हमने शान्तिकी टेक छोड़ दी। अगर सम्पूर्ण शान्ति