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३९८. भाषण: गोरक्षा-परिषद् में

[ २८ दिसम्बर, १९२४ ]

बेलगाँवमें हुई गो-रक्षा-परिषद् में गांधीजीने अध्यक्षकी हैसियतसे नीचे लिखा भाषण दिया:

मुझे दुःख है कि जो सभा ४ बजे शुरू होनी थी, वह ६ बजे शुरू की गई; और आज मेरे सामने ऐसा प्रसंग आ गया है कि मुझे इसको सवा घंटेमें ही पूरा कर देना होगा। ऐसा कोई दूसरा उपयुक्त समय है नहीं, जब यह कार्य किया जा सके; और इस परिषद्को परसोंतक मुल्तवी रखा नहीं जा सकता। इसलिए मैंने चिकोड़ीसे[१]कहा था कि ४ घंटे काफी हैं और इसे ८ बजेतक पूरा कर देंगे। लेकिन यह नहीं हो सका।[२]


मेरे विचारसे गो-रक्षाका प्रश्न स्वराज्यके प्रश्नसे छोटा नहीं है। कई बातों में मैं इसे स्वराज्यके प्रश्नसे भी बड़ा मानता हूँ। मैं मानता हूँ कि जिस तरह अस्पृश्यताके दोषसे मुक्त हुए बिना, हिन्दू-मुस्लिम एकता साधे बिना और खादीधारी बने बिना हम स्वराज्य नहीं ले सकते, उसी तरह मुझे कहना चाहिए कि जबतक हम यह न जान लें कि गो-रक्षा किस तरह करनी चाहिए तबतक स्वराज्य-जैसी कोई चीज नहीं है; क्योंकि उसमें हिन्दू-धर्मकी सच्ची कसौटी है।[३]

मैं सनातनी हिन्दू होने का दावा करता हूँ, बहुत-से भाइयोंको हँसी आती होगी कि मुसलमानोंमें हिलने-मिलनेवाले, 'बाइबिल' की बातें करनेवाले, अंग्रेजोंके साथ पानी पीनेवाले, मुसलमानोंकी बनाई हुई रोटी खानेवाले और अछूतकी लड़कीको गोद लेनेवालेको सनातनी हिन्दू कहना, भाषापर अत्याचार करना कहा जायेगा। फिर भी मैं सनातनी हिन्दू कहलानेका दावा करता हूँ; और मुझे विश्वास है कि एक समय ऐसा आयेगा जब मेरे मरनेके बाद सब यह स्वीकार करेंगे कि गांधी सनातनी हिन्दू था, क्योंकि गो-रक्षा मुझे बहुत प्रिय है।

बहुत समय हुआ, मैंने 'यंग इंडिया' में 'हिन्दू-धर्म' पर एक लेख[४]लिखा था। वह मेरा अत्यन्त विचारपूर्वक लिखा हुआ लेख है। उसमें हिन्दुत्वके लक्षणोंपर विचार

  1. स्वागत-समितिके अध्यक्ष।
  2. यह पैरा महादेव देसाईकी डायरीसे लिया गया है।
  3. यंग इंडिया, २९-१-१९२५ में, प्रकाशित इस भाषणके अंग्रेजी विवरणके अनुसार यह वाक्य कुछ इस प्रकार है: मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि जिस प्रकार हिन्दू-मुसलमान एकता पैदा किये बिना, हिन्दू धर्मको अस्पृश्यताके कलंकसे मुक्त किए बिना और हाथ कते तथा हाथ बुनेको पहनावा बनाये बिना स्वराज्य हासिल करना असम्भव होगा, उसी तरह गो-रक्षाका कोई सही उपाय निकाले बिना स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव और स्वराज्य शब्द बिलकुल ही अर्थहीन होगा, क्योंकि यही एक कसौटी है जिसपर हिन्दू धर्मको परखा और प्रमाणित किया जा सकता है और तभी भारतमें वास्तविक स्वराज्य सम्भव हो सकता है।
  4. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ २५६-६१।