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बेलगाँवके संस्मरण [-२]

तैयार हैं कि वे एक सर्वथा नैतिक आधारपर गुरुद्वारोंके सुधारके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहते।

बौद्धोंकी शिकायत

लंकाके श्री परेरा चाहते थे कि मैं कांग्रेसको बुद्ध-गयाके मन्दिरके सवालमें दिलचस्पी लेनेके लिए प्रेरित करूँ। पाठकोंको शायद याद होगा कि पिछले कुछ सालसे एक आन्दोलन चला आ रहा है कि गयाका विशाल ऐतिहासिक बुद्ध मन्दिर फिरसे बौद्धोंके हवाले कर दिया जाये। लेकिन मालूम होता है, अभी आन्दोलन कोई खास आगे नहीं बढ़ पाया है। कोकोनाडा कांग्रेसने बाबू राजेन्द्रप्रसादको इस मामलेकी जाँच करके रिपोर्ट पेश करनेके लिए मुकर्रर किया था। इस बैठकतक वे यह नहीं कर सके थे। कांग्रेस सप्ताहके दौरान लंकासे बौद्धोंका एक शिष्टमण्डल कांग्रेसके सामने बौद्धोंका पक्ष स्वयं पेश करनेके लिए बेलगाँव आया था। श्री परेरा कुछ नेताओंसे मिलकर फिर मुझसे मिले। वास्तवमें उनको मेरे सामने वह सब पेश करनेकी जरूरत ही न थी। मैं तो पहलेसे उन्हींके मतका था। लेकिन यहाँ भी वही समस्या थी। मैं करता क्या? मैंने जो काम पहले ही हाथमें ले रखा था, उसके सिवा और कार्य करनेकी मुझे फुरसत ही न थी। लेकिन श्री परेराको टालना भी मुश्किल था। मैंने उनसे कहा कि मुझे भी उनकी बातमें उतना ही विश्वास है जितना कि उन्हें स्वयं है, लेकिन कांग्रेस शायद उनकी ज्यादा मदद न कर सकेगी। पर वे डटे रहे और आखिर मुझे इस बातपर राजी होना ही पड़ा कि वे विषय समितिमें उपस्थित होकर अपनी बात कहें और फिर अगर समितिको उनकी बातें अस्वीकार हों तो वे सीधे उसीके मुँहसे अस्वीकृति सुनें। श्री परेरामें आत्मविश्वास था। उनके मीठे बरताव और संक्षिप्त लेकिन सुन्दर भाषणकी छाप समितिपर अच्छी पड़ी और उसने उसी वक्त उसपर विचार करनेका निश्चय किया। लेकिन, अफसोस! बहसके बाद समिति इस निष्कर्षपर पहुँची कि वह श्री परेराको कोई खास मदद नहीं दे सकती; उसे अपने प्रतिनिधिकी रिपोर्ट तबतक नहीं मिली थी। और पिछले साल इस विषयपर काफी विस्तारसे चर्चा हो चुकी थी, लेकिन तीव्र मतभेदके कारण उसे इस विषयको छोड़ देना पड़ा था। इसलिए समिति सिर्फ इतना ही कर सकी कि उसने राजेन्द्रबाबू से कहा कि जल्दीसे जाँच करके चालू महीनेके आखिरतक या उससे पहले अपनी रिपोर्ट वे कार्य समितिमें पेश कर दें। हाँ, इसमें तो शक नहीं कि मन्दिरका कब्जा बौद्धोंके ही हाथोंमें होना चाहिए। इसमें कुछ कानूनी अड़चनें पेश आ सकती हैं। उन्हें दूर करना होगा। यदि वह खबर सच है कि उस मन्दिरमें पशुओंकी बलि दी जाती है तो बेशक यह मन्दिरकी पवित्रता भंग करना है और जैसा कि कहा जाता है, पूजा भी ऐसे तरीकोंसे की जाती है जिनसे बौद्धोंका दिल दुखता है तो यह भी मन्दिरकी पवित्रताको भंग करनेवाला काम है। मन्दिरके असल हकदारोंको मन्दिरका कब्जा दिलानेमें सहायता करना हमारे लिए गर्वकी बात होनी चाहिए। मुझे आशा है कि राजेन्द्रबाबू इस विषयसे सम्बन्धित सभी कागजात इकट्ठा करेंगे और उनके आधारपर ऐसी परिपूर्ण रिपोर्ट तैयार करेंगे, जिससे कि इस मामलेमें बौद्धोंकी सहा-