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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यता करनेके इच्छुक सभी लोगोंको मार्ग-दर्शन और सहायता मिले। मुझे यह भी आशा है कि श्री परेरा भारतमें ही रहकर राजेन्द्रबाबू की मदद करेंगे।

शिक्षक सम्मेलन

राष्ट्रीय शिक्षकोंका भी एक अनौपचारिक सम्मेलन हुआ और उसमें वे कुछ निश्चित परिणामोंपर पहुँचे। बहस खासी दिलचस्प रही। सारी बहसका केन्द्र चरखा ही था। अच्छे-अच्छे विद्वान् सम्मेलनमें आये थे। मुझे आशा है, शिक्षक लोग शिक्षकोंके लिए ही पास किये गये उन प्रस्तावोंपर ठीक-ठीक और शब्दशः अमल करेंगे। प्रस्तावोंको पास करके उनपर कभी अमल न करना हमारे राष्ट्रीय जीवनका एक अभिशाप रहा है। यों ही बेमतलब वचन देना शिक्षकोंके लिए तो सबसे ज्यादा अशोभनीय है। देशके युवकोंको एक सही साँचेमें ढालनेका काम उन्हीं के हाथों में है। उन्हें यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिए कि विद्यार्थी लोग इन प्रस्तावों और वचनोंकी पवित्रताके सम्बन्धमें उनके लम्बे-चौड़े प्रवचनोंसे प्रभावित होनेकी बजाय उनके वचन-भंगके बुरे उदाहरणका अनुकरण कहीं अधिक तत्परतासे करेंगे। राष्ट्रके लिए यह साल एक आजमाइशका साल है। कांग्रेसने लगभग एक ही चीजके लिए अपना सर्वस्व दाँवपर लगा दिया है अर्थात् खादी पैदा करने और विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार करनेके लिए। राष्ट्रीय पाठशालाएँ तभी राष्ट्रीय कहलायेंगी जब वे राष्ट्रीय कार्यमें मदद करेंगी। इसके लिए उनके शिक्षकोंको, छात्र-छात्राओंको वे तमाम काम सीखने होंगे जिनकी जरूरत खादी पैदा करनेमें पड़ती है। उन्हें स्वयं खादी पहननी होगी और जितना कात सकें कातना होगा। इसके लिए जरूरी नहीं कि वे अपनी दूसरी पढ़ाईकी उपेक्षा करें, लेकिन उन्हें उन बातोंकी उपेक्षा तो हरगिज नहीं करनी है, जो राष्ट्रके लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। शिक्षकोंने बहुत बड़े बहुमतसे इस बातको स्वीकार किया है। मैं आशा करता हूँ कि वे अपने वचनके अनुसार कार्य करके इसको सफल बनायेंगे।

विद्यार्थी

विद्यार्थियोंका भी एक सम्मेलन हुआ है। उनमें केवल राष्ट्रीय पाठशालाओं और विद्यालयोंके ही विद्यार्थी नहीं, बल्कि अधिकांशतः सरकारी पाठशालाओंके ही विद्यार्थी थे। विद्यार्थियोंके छुट्टीके दिनों और दूसरे खाली समयका उपयोग करनेकी एक योजना सभापति श्री रेड्डीने तैयार की थी। उनकी योजना यह थी कि सभी विद्यार्थी (वे वकीलोंको भी उनमें शामिल करना चाहेंगे) कमसे-कम एक सालमें २८ सायंकाल राष्ट्रको देनेकी प्रतिज्ञा लें। प्रत्येक स्वयंसेवक विद्यार्थी अपने पड़ोसके चार गाँवोंको अपने क्षेत्रीय कार्यके लिए चुन ले। श्री रेड्डीने भिन्न-भिन्न विषयोंपर एक व्याख्यान-माला आयोजित करने की सलाह दी। मैं तो अभी इन स्वयंसेवकोंके अवकाशके समयका उपयोग सिर्फ खादीके प्रचारमें ही कराना चाहता हूँ। लेकिन सेवाका यही एक मार्ग तो नहीं है जिसका अनुसरण करके विद्यार्थी और वकील लोग सहायता कर सकते हों। बेशक वे कमसे कम इतना तो कर ही सकते हैं कि स्वयं खादी पहनें और रोज