पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६४७

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भाषण : शामलदास कालेज, भावनगर में ६११ ही सिखाये जाते थे। मंत्र क्या है ? संक्षिप्त भाषामें कहा हुआ सार-तत्त्व | इसके बाद उसपर टीकाएँ हुई । आज तो पुस्तकोंका ढेर लग गया है। मैं यदि अपने ही कालकी बात करूँ तो मुझे ऐसी अनेक चीजें याद आती हैं, जो त्याग करने लायक थीं। छठी-सातवीं श्रेणीके विद्यार्थियोंमें कौन रेनॉल्ड्सके उपन्यास नहीं पढ़ता था, यह कहना कठिन है । पर मैं तो था मन्द-बुद्धि । मैं महज पास होनेका ही खयाल करता था । पिता की सेवा करना और पास होनेके लायक किताबें पढ़ लेना, यही मेरा काम था। इससे मैं उन उपन्यासोंसे बच गया । औरोंपर ऐसी पुस्तकोंका क्या असर होता है, सो मैं नहीं जानता । पर विलायत में मैंने देखा कि समाजके शिष्ट वर्गोंमें ये पुस्तकें पढ़ी नहीं जाती थीं। उनका पढ़ना अच्छा नहीं समझा जाता था । सो मैंने देखा कि उनके न पढ़नेसे मेरी कुछ हानि न हुई । इसी प्रकार आज अनेक चीजें ऐसी हैं जिनसे मुँह मोड़ने की जरूरत है । हम बड़ी विषम स्थिति में आ फँसे हैं । आज तो १२ सालकी उम्र में आजीविकाका विचार करना पड़ता है। यह विद्यार्थी आश्रम के साथ गृहस्थाश्रमका संकर हुआ । गंगा-जमनाका संगम तो सुन्दर है; पर यह संगम नहीं, संकर है । अतएव विद्यार्थियोंको आज यह जान लेना चाहिए कि देश में क्या हो रहा है। आज शायद ही कोई विद्यार्थी ऐसा होता है जो अखवार न पढ़ता हो । मैं किस तरह कहूँ कि आपको अखबार न पढ़ना चाहिए ? पर विद्यार्थियोंसे में इतना तो जरूर कहूँगा कि अखबारोंके क्षणिक साहित्यकी ओर आंख उठाकर न देखना । उसमें सच्चा साहित्य, शिष्ट भाषा नहीं मिलती । उनसे जो बातें मिलती हैं वे क्षणिक होती हैं। हमें जरूरत तो स्थायी भाषा ग्रहण करने की है। विद्यार्थी जीवन, जीवनको बुनियाद है, जीवनकी तैयारी है। इस कालमें हम अपने लिए अखबारोंसे विचार-सामग्री किस तरह ले सकते हैं । यदि तुम कहो कि हम अखबार नहीं पढ़ेंगे तो तुम्हारा यह कहना स्वाभाविक नहीं होगा । क्योंकि तुम तो दास या गांधीका भाषण पढ़कर कहो कि अमुक भाषण बढ़िया था और अमुक यों ही था -- यह स्थिति दयाजनक है, भयंकर है। इससे हमें बाहर निकलना ही होगा । यह बात मैं इसीलिए कहता हूँ कि मैंने शिक्षाके अनेक प्रयोग किये हैं। अपने लड़के- बच्चे और औरोंके लड़के-लड़की या जवान लड़के-लड़कियोंको साथ रखकर शिक्षा देनेकी भयंकर जोखिम मैंने उठा देखी है । पर मैं पार हो गया; क्योंकि जिस तरह माता-पिता की आँख जवान लड़की की गतिविधिका निरीक्षण करती रहती है उसी तरह मैं भी चारों ओर नजर रखता था । मैंने उन लड़के-लड़कियोंके माँ-बापका स्थान लिया था; उनपर डिटेक्टिव की तरह नजर रखता था । राजा भी था और गुलाम भी था । इससे मुझे इस बातका अनुभव हुआ कि शिक्षा क्या चीज है ? कैसी होनी चाहिए ? और इसका विचार करते-करते मैंने सत्याग्रहको पाया, मुझे असहयोगका दर्शन हुआ । और इसलिए मुझे इन प्रयोगोंका साहस हुआ । आप ऐसा न समझना कि मैंने ये प्रयोग केवल स्थूल स्वराज्य के लिए किये हैं। मैंने तो संसार के सामने एक चिरंतन सनातन धार्मिक वस्तु रख दी है। इसकी जड़ें गहरी पहुँच गई हैं, इसलिए लड़कों के सामने भी इसे पेश करते हुए मुझे संकोच नहीं होता। इसकी निर्दोषताको मैं किस प्रकार प्रकट करूँ ? मैंने जब देखा कि मेरे शान्तिके प्रयोगसे अशान्ति फैली तो मैंने Gandhi Heritage Portal