पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६४९

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स्वराज्यके व्यापारी ६१३ क्योंकि मधु- मुझे पसन्द नहीं । पर उसके कितने ही रसका स्वाद मैं लेता हूँ- मक्खियोंकी तरह मैं तो मधुरताकी खोज करता रहता हूँ । इन लोगोंकी 'हॉबी' में बहुत रहस्य भरा रहता है। कर्नल मैडॉक एक आँखसे अंधे थे। नश्तर लगाते हुए ही एक आँख चली गई। उनकी उम्र भी कोई साठ सालकी होगी, फिर भी वे शल्य क्रिया में निपुण थे। चाकूसे सीधा नश्तर लगाते, पर खबरतक न होती। वे चौबीसों घंटे नश्तर नहीं लगाया करते थे । परन्तु दो घंटे वे अपनी 'हॉबी' को -- बगीचेमें काम करनेके लिए देते थे । और इससे उनका जीवन रसमय बना हुआ था । मैं तुम्हारे सामने चरखा इसलिए रख रहा हूँ कि तुम्हारा जीवन रसमय हो, तुम्हें धर्म मिले, कर्म मिले, शान्ति मिले, विवेक मिले। विद्यार्थी जीवनमें श्रद्धा बड़ी जरूरी चीज है । किसी बातको बुद्धि स्वीकार न करती हो तो भी उसे मान लेना पड़ता है. : -- मेरे पारसी मित्र स्वीकार करेंगे, क्योंकि भूमितिमें वे मेरे ही जैसे शून्य होते हैं। • कितनी ही बातें मान लेनी पड़ती हैं। भूमितिमें मेरी गति ही रुक जाती थी । २४वाँ साध्य तो समझ में आता ही न था । पर मैं किसी तरह गाड़ी खींचता । आज वह विषय मुझे बड़ा आनन्दमय मालूम होता है । आज अगर भूमितिकी पुस्तक हाथमें आ जाय तो मैं उसमें डूब सकता हूँ । विद्यार्थी जीवनमें चित्त श्रद्धामय होनेके कारण ही मैंने यह मान लिया था कि किसी-न-किसी दिन इसका मर्म समझ में आ जायेगा। तुममें भी यदि श्रद्धा होगी तो तुम्हें मालूम हो जायेगा कि एक व्यक्तिने जो बात कही थी, वह सच थी । चरखेपर खूब विचार करके ही एक शास्त्रीने 'गीता 'का यह श्लोक चरखेपर घटाया है -- [ गुजरातीसे ] 'नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ।। नवजीवन, १८-१-१९२५ ४२७. स्वराज्यके व्यापारी सदस्यता की शर्तों में जो नवीन परिवर्तन हुए हैं, ऐसा लगता है, वे अब भी बहुतों को भयानक मालूम होते हैं। इसपर मुझे ताज्जुब नहीं होता। नई चीज बहुतोंको कई बार दुविधा में डाल देती है, कितनी ही बार डर पैदा कर देती है। मुझे आशा है कि वक्त साथ-साथ डर जाता रहेगा और लोग सदस्यता की शर्तमें चरखेको स्थान मिलनेका महत्त्व समझ जायेंगे । इसे समझने में मदद करनेके लिए इतना आवश्यक है कि जिन लोगोंका चरखेपर विश्वास है, उसपर अटल रहकर अपना विश्वास साबित करें । प्रान्तीय कमेटियोंकी राह न देखकर जो पहलेसे कात रहे हैं वे ज्यादा नियम- पूर्वक कातें और जो न कातते हों, वे कातना शुरू कर दें। जैसे-जैसे दो-दो हजार गजकी ऑटियाँ तैयार होती जायें, वैसे-वैसे वे उन्हें अपनी-अपनी प्रान्तीय कमेटियों को १. भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ४० । Gandhi Heritage Portal