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६१४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय भेजते जायें और अपने नाम दर्ज कराते जायें। इसके लिए प्रान्तीय कमेटीके नोटिस की राह देखने की जरूरत नहीं । जो लोग कातते हैं, उन्हें औरोंको समझाने का भी काम शुरू कर देना चाहिए । और जो बात कताईपर घटती है, वही खादीपर भी घटती है। अभी खादी- का काफी प्रचार करनेकी जरूरत है । दाहोद और गोधराके सफर में मैंने देखा कि अभी बहुत थोड़े लोग खादी पहनते हैं । यह भी सुनता हूँ कि बहुतेरे लोग सिर्फ सभा सम्मेलन में ही खादी पहनते हैं । इस तरह कहीं विदेशी कपड़ेका बहिष्कार हो सकता है ? स्त्रियों में तो मुझे खादीका बहुत कम प्रचलन देखनेको मिला। सो दाहोद और गोधराके स्वयंसेवकोंको मेरी खास सलाह है कि वे इन दोनों शहरों में घर-घर जाकर लोगोंको खादी के इस्तेमालकी जरूरत और कताईका कर्त्तव्य समझायें । व्यापारी जिस तरह रात-दिन अपने व्यापारकी बढ़तीकी योजना ही बनाता रहता है, उसी तरह हमें भी करना चाहिए। हम स्वराज्य के व्यापारी हैं । हम जानते हैं कि विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सम्पन्न होने से ही स्वराज्यका व्यापार बढ़ सकता है । हरएक स्वयंसेवकको अपनी जिम्मेवारी समझ लेनी चाहिए। हर व्यक्ति डायरी रखे और रातको अपने मनसे नीचे लिखे सवाल पूछे और उनके जो जवाब मिलें उन्हें उसमें लिख ले | १. आज मैंने कितना गज सूत काता ? २. आज मैंने कितनोंको सूत कातनेके लिए समझाया ? ३. आज मैंने कितनोंको खादी पहननेपर रजामन्द किया ? जो व्यक्ति ईमानदारी के साथ इन सवालोंके जवाब हमेशा अपनी डायरीमें लिखता रहेगा, वह शीघ्र ही यह देखेगा कि उसकी काम करनेकी शक्ति बढ़ रही है । थोड़ा-बहुत पुरुषार्थं तो मनुष्य मात्रमें है और हमेशा अपनी हारकी बातें लिखना उसे पसन्द नहीं आता । इसलिए ईमानदार आदमी उस हारको हरा देता है और फतह हासिल करता है । अच्छा व्यापारी अपने कामका रोजनामचा रखता है और उसका अमूल्य लाभ जानता है । जहाज के कप्तान के लिए तो रोजनामचा रखना लाजिमी होता है । फिर, स्वराज्यके व्यापारी क्यों न रोजनामचा रखें ? हताश जनता यदि आशावान बनना चाहे तो उसके लिए कांग्रेसने प्रशस्त राजमार्ग दिखा दिया है । हम यदि आलस्यको छोड़ देंगे और उद्यम करेंगे तो हमें तुरन्त उसका मीठा फल चखने को मिलेगा। यह समय न तो टीका-टिप्पणीका है, न शंका-संशयका है । यह मुँह बन्द करके चुपचाप सिर्फ काम करनेका, अर्थात् सूत कातनेका और कतवानेका, खादी पहनने का और दूसरोंको उसे पहननेके लिए राजी करनेका समय है । [ गुजराती से ] नवजीवन, ११-१-१९२५ Gandhi Heritage Portal