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३१. टिप्पणियाँ

लॉर्ड लिटनकी सफाई

लॉर्ड लिटनने कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरको एक पत्र लिखकर अपनी सफाई दी है। उनके खुलासेसे मेरी रायमें उनके द्वारा किया गया भारतीय स्त्री-जातिका अपमान घटता नहीं, उलटे बढ़ जाता है। वाइसराय महोदयने व्याकरणके सूक्ष्म भेदोंकी जो दुहाई दी है, उससे मेरी समझमें स्थिति सुधरती नहीं। मुझे यकीन है कि जब वाइसराय महोदयने वे अविवेकपूर्ण उद्गार प्रकट किये थे तब भी किसीने यह तो नहीं माना था कि उनका कथन हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंके सम्बन्धमें आमतौरपर था। लोगोंकी शिकायत तो यह है कि वाइसराय महोदयने वह बात ही क्यों कही? जब कोई जिम्मेदार आदमी किसीपर कोई दोषारोपण करता है तब उसके सम्बन्धमें हमेशा दो अनुमान होते हैं: एक तो यह कि खुद उसने उन बातोंके सम्बन्धमें अपनी पूरी तसल्ली कर ली है और वह दुनियाके सामने उसे साबित कर सकता है। दूसरा यह कि आरोपसे सम्बन्धित बुराई लगभग सर्व-सामान्य है। अब पुलिसके सबूतके अलावा क्या वाइसराय महोदयके पास अन्य कोई ऐसा सबूत है, जिससे वे सर्वसाधारणको, उदाहरणके लिए कविवरकी ही, अपनी बातका यकीन करा सकें? क्या वे इस बातको नहीं जानते कि सर्वसाधारणका विश्वास पुलिसपर नहीं रह गया है? क्या वे यह नहीं जानते कि जहाँतक सर्वसाधारणका ताल्लुक है, पुलिसकी स्थिति आमतौरपर प्रतिवादी-जैसी होती है? थोड़ी देरके लिए यह मान भी लें कि यह तोहमत कुछ मर्दों और कुछ औरतोंकी निस्बत सच है, तो क्या वे यह साबित कर सकते हैं कि यह बुराई इतनी व्यापक हो गई है कि उन्हें उसकी सार्वजनिक निन्दा करनेकी जरूरत पड़ी? यदि कोई जिम्मेदार हिन्दुस्तानी यह कहे कि अंग्रेज सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार और चरित्रहीनताके अपराधी हैं, क्योंकि उसकी जानकारीमें ऐसे इक्के-दुक्के अधिकारियोंके मामले हैं, तो क्या उसका यह कहना न्याययुक्त होगा? अगर कोई ऐसा कहे तो क्या उससे रोषपूर्वक नहीं कहा जायेगा कि उनके नाम बताओ और उन्हें अदालतमें ले जाओ और साथ ही, उससे इस बातपर माफी न मँगवाई जायेगी कि जो बुराई केवल कुछ लोगोंपर घटती है उसे उसने एक पूरे समाजपर थोप दिया है? ऐसी अवस्थामें क्या वह मुलिजम 'कुछ' शब्दकी ओटमें अपना बचाव कर पायेगा? यदि लॉर्ड लिटनके कहनेका अभिप्राय सिर्फ इतना ही था कि अन्य राष्ट्रोंकी तरह हिन्दुस्तानी जन-समाजमें भी कुछ पतित लोग हैं, तब फिर उनकी शिकायतके लिए जगह ही कहाँ रह जाती है, और वह भी ऐसे भाषणमें जो कि गम्भीर विषयपर था, जिसके बारेमें वे जानते थे कि उसका एक-एक शब्द यहाँ बड़े ध्यानसे पढ़ा जायेगा और विदेशोंमें भी उसका काफी वजन माना जायेगा। अतएव मैं अदबके साथ यह कहे बिना नहीं रह सकता कि यदि उनका उद्देश्य यह न रहा