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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संख्या बहुत थोड़ी है तबतक उन्हें लाजिम है कि वे देशी मिलोंतक में बने अथवा मिलके सूतसे बने कपड़ोंकी बजाय एकमात्र खादीका प्रचार करें। लोगोंको देशी मिलोंके कपड़े या खादीका विकल्प देना, मानो खादीको निर्मूल कर देना है।

मिलकी खादी

इसपर कोई अधीर देशप्रेमी कहेगा "जब कि मिल-मालिक नकली खादी भोलीभाली जनताके सिर मढ़कर उनकी आँखों में धूल झोंकते नहीं हिचकते तब आपके दिलमें मिलोंके लिए कैसे गुंजाइश हो सकती है?" हाँ, मुझे इस नकली खादीका पता है। मैंने जान-बूझकर ऐसी नकली खादीके कुछ बढ़िया नमूने अपने सामने रख छोड़े हैं, जिससे कि वे मुझे मेरे इस कर्त्तव्यकी याद दिलाते रहें कि मुझे ऐसे मिलमालिकोंके इस राष्ट्र-विरोधी आचरणके बावजूद उनपर गुस्सा नहीं करना है। मैं यह भी जानता हूँ कि बिना खादीकी होड़ा-होड़ीमें पड़े भी वे अपना रोजगार अच्छी तरह कर सकते थे। उन्हें कमसे-कम अपने मोटे कपड़ेको झूठ-मूठ खादीके नामपर बेचनेके पापसे तो बचना ही चाहिए था; क्योंकि यह तो वे अच्छी तरह जानते है कि 'खादी' नाम केवल उसी कपड़े के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि हाथकता और हाथ-बुना हो। परन्तु यों बुराईका जवाब बुराईसे देनेसे वह भलाई नहीं हो सकती। मेरा सत्याग्रह-धर्म मुझसे कहता है कि बदला लेनेकी नीयत न रखो। उनके राष्ट्र-विरोधी आचरणका अनुकरण मैं तो नहीं कर सकता। मुझे निश्चय है कि खादीके अनुरागी लोग यदि अपने विश्वासपर दृढ़ और सच्चे बने रहे तो तमाम कठिनाइयोंके होते हुए भी हाथ-कती खादी फूलने-फलने लगेगी। इसलिए असहयोगियोंको चाहिए कि कपासपर लगे उत्पादन-करको हटानेकी ही नहीं, बल्कि मिलोंके महान् उद्योगकी रक्षाके लिए भी बराबर आवाज उठाते रहें और कुछ मिलें जो जानमें या अनजानमें खादीको हानि पहुँचा रही हैं, उसका कुछ खयाल न करें।

विदेशोंमें रहनेवाले भारतीय

मैं श्री एन्ड्रयूज द्वारा भेजे गये एकाधिक लेख एक ही अंकमें छाप रहा हूँ। ये सब इसी सप्ताहके दौरान प्राप्त हुए हैं। इनसे पता चलता है कि उनके मनमें भारतके लिए कितना उत्कट प्रेम है और हर अन्यायके विरुद्ध उनके मनमें कितना रोष है। इन लेखोंसे एक ही नजरमें पता चल जाता है कि दुनियाके विभिन्न भागोंमें बिखरे हुए हमारे देश-भाइयोंसे सम्बन्धित हमारा काम कितना कठिन है। जिन दिनों श्रीमती नायडू दक्षिण आफ्रिकामें थीं, उन्हीं दिनों नेटाल अध्यादेशको बनानेकी तैयारी बड़े जोर-शोरसे चल रही थी। अब इस अध्यादेशसे स्पष्ट हो गया है कि श्रीमती नायडूके महत्त्वपूर्ण कामको और आगे बढ़ाना है। केनियामें आफ्रिकियों और भारतीयोंके साथ जो धोखा किया गया है वह तो इतना बड़ा अन्याय है कि बेचारा भारत उससे निपट नहीं सकता। जिस प्रणालीके अन्तर्गंत हमारे देशवासी बर्मा जाते हैं वह तो इतने भयंकर रूपसे अनैतिकतापूर्ण है कि हमें निरन्तर जागरूक रहनेकी आवश्यकता है। जिन दिनों में तीसरे दर्जेमें सफर किया करता था तब मैंने अपनी आँखों देखा कि