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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ कि अगले माहसे अ० भा० खादी-बोर्ड द्वारा समय-समयपर दी गई हिदायतोंका पूरा-पूरा पालन किया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-८-१९२४

३२. गुलबर्गाका पागलपन

पिछले सप्ताह मैंने इशारा किया था[१] कि हिन्दुओंके मन्दिरोंको अपवित्र करनेकी जो हवा आजकल बह रही है उसके पीछे जरूर कोई संगठित जमात है। इस सिलसिलेमें गुलबर्गाकी मिसाल सबसे ताजा है। हिन्दुओंकी ओरसे मुसलमानोंको अगर उत्तेजनाका कोई कारण दिया गया हो तो वह चाहे कैसा भी क्यों न रहा हो, लेकिन मुसलमानोंकी हिंसात्मक कार्रवाइयाँ किसी बड़ी विपत्तिकी सूचक हैं। मन्दिरोंको अपवित्र करना तो किसी भी हालतमें उचित नहीं कहा जा सकता। मौलाना शौकत अलीने जब शम्भर और अमेठीमें मन्दिरोंको अपवित्र करनेका हाल सुना तो वे गुस्सेमें कह उठे थे कि अगर किसी दिन हिन्दू लोग मुसलमानोंकी मसजिदोंको नापाक करके इसका बदला लें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। मौलाना साहबके इन क्रोधपूर्ण वचनोंको सुनकर मुमकिन है, हिन्दू लोग फूल उठें या उनको खुशी हो; लेकिन मुझे नहीं होती और मैं हिन्दुओंको सलाह देता हूँ कि वे भी इसपर खुश न हों। वे इस बातको अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमानोंके हर धर्मान्धतापूर्ण कृत्यसे बहतेरे हिन्दुओंके मुकाबले कहीं अधिक चोट मेरे दिलको पहुँचती है। मझे इस बातका पूरा ध्यान है कि इस मामलेमें मेरी जिम्मेदारी क्या है। मैं जानता हूँ कि बहुतेरे हिन्दुओंका दिल यह कहता है कि ऐसे बहुतेरे दंगे-फसादोंका जिम्मेदार मैं हूँ। क्योंकि, उनका कहना है, सोई हुई मुसलमान-जनताको जाग्रत करने में मेरा सबसे ज्यादा हाथ है। मैं इस इलजामकी कद्र करता हूँ। यद्यपि इस जागृतिमें अपने योगदानके लिए मुझे जरा भी पछतावा नहीं, तथापि मैं महसूस करता हूँ कि उनके कथनमें वजन है। इसलिए अगर और किसी वजहसे नहीं तो अपनी बढ़ी हुई इसी जिम्मेदारीके खयालसे मुझे बहुतेरे हिन्दुओंकी अपेक्षा, इन मन्दिरोंके अपवित्र किये जाने की दुर्घटनाओंपर अधिक दुःख होना चाहिए। मैं मूर्तिपूजक भी हूँ और मूर्तिभंजक भी, पर उस अर्थ में जिसे मैं इन शब्दोंका सही अर्थ मानता हूँ। मूर्ति पूजाके पीछे जो भाव है मैं उसका आदर करता हूँ। मनुष्य-जातिके उत्थानमें उससे बहुत सहायता मिलती है और मैं चाहूँगा कि अपने प्राण देकर भी उन हजारों पवित्र देवालयोंकी रक्षा करनेकी सामर्थ्य मुझमें हो, जो हमारी इस जननी जन्म भूमिको पुनीत कर रहे हैं। मुसलमानोंके साथ जो मेरी मित्रता है, उसके अन्दर यह बात पहलेसे ही ग्रहीत है कि वे मेरी मूर्तियों और मेरे मन्दिरोंके प्रति पूरी-पूरी सहिष्णुता बरतेंगे। मैं मूर्तिभंजक इस मानीमें हूँ कि मैं उस धर्मान्धताके रूपमें

  1. १. देखिए "टिप्पणियाँ", २१-८-१९२४, उप-शीर्षक "मन्दिरोंकी पवित्रताका भंग"।