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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रश्न: लोग क्या चाहते थे?

उत्तर: लोग चाहते थे कि मामला सरकारको सौंप दिया जाय। शरहके मामलेपर भी लोगोंसे बातचीत हुई। अगर हिन्दू इसे मंजूर कर लेते तो उन्हें बड़ी खुशी होती।

प्रश्न: अगर लोग दोनों विकल्पोंके लिए तैयार थे तो फिर उनकी बात मानकर उन्हें शान्त करानेकी क्या जरूरत थी?

उत्तर: उन्हें शान्त कराने की जरूरत इसलिए पड़ी कि वे खुद ही बदला लेना चाहते थे। मैंने उन्हें समझाया कि वे कानूनको तोड़कर मनमानी न करें।

प्रश्न: वहाँ लोगोंको कौन लाया था?

उत्तर: वहाँ लोग खद ही आ गये थे और उनको शिष्टमण्डलपर शक था। जब जिरगेके मामलेपर विचार किया गया तब पीर साहब वहाँ मौजूद नहीं थे।

प्रश्न: क्या हिन्दुओंको शरह और जिरगेकी बात बताई गई थी?

उत्तर: मैं वहाँ मौजूद नहीं था। सिर्फ शिष्टमण्डलने हिन्दुओंसे बातचीत की थी और वह यह उत्तर ले कर वापस आया था कि हिन्दू दोनोंमें से किसी भी शर्तको मानने के लिए तैयार नहीं हैं। शिष्टमण्डलने यह एक तीसरी शर्त भी सुझाई थी कि यह मामला खिलाफत कमेटीको सौंप दिया जाये। इसपर मैंने कहा कि खिलाफत कमेटी इस मामलेका फैसला नहीं कर सकती क्योंकि अब यह आम जनताके हाथमें चला गया है।

प्रश्न: ५ सितम्बरके बाद क्या हुआ था?

उत्तर: शिष्टमण्डल ६ सितम्बरको पेशावर वापस चला गया था। हम सब इस खयालमें थे कि जीवनदास हवालातमें है और उसपर मुकदमा चलाया जायेगा।

प्रश्न: क्या ६ और ७ सितम्बरको कोहाटमें किसी तरहकी उत्तेजना थी?

उत्तर: उन दोनों दिनोंके दौरान कोहाटमें इस तरहकी कोई बात नहीं थी। सामान्य कामकाज साधारण रूपसे चल रहा था।

प्रश्न: जीवनदास ८ सितम्बरको किस वक्त रिहा किया गया था?

उत्तरः उस दिन मैं चुरकोटा चला गया था और वहाँ नहीं था। मैं वहाँ ४ बजे शामको गया था। उस वक्त मियाँ फजलशाह और मियाँ रहमतुल्ला मेरे यहाँ थे। मैं चुरकोटासे मगरिबकी नमाज पढ़कर लौटा था। कोहाट आते समय मुझे कुछ गाँवके लोग मिले जो अपनी जरूरी चीजें ले कर आ रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा "आप यहाँ हैं। जीवनदास रिहा कर दिया गया है, इसलिए शहरमें बड़ी उत्तेजना फैली हुई है। लोग हजरत हाजी बहादुरकी मस्जिदमें इकट्ठा हो रहे हैं।" इसपर मैं मस्जिदमें गया। उस समय रातके ८-४५ बजे थे। मैंने देखा कि मस्जिदके बाहर और भीतर लोगोंका एक मजमा है और वह डिप्टी कमिश्नर द्वारा जीवनदासको ११ सितम्बरकी निश्चित तारीखसे पहले रिहा करने की कार्रवाईपर एतराज जाहिर कर रहा है। मैं मस्जिदके भीतर गया और मैंने लोगोंसे पूछा, "आप क्या चाहते हैं।"