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कोहाटके दंगोंके बारेमें अहमद गुलसे जिरह

प्रश्न: लोग क्या चाहते थे और पेशावर शिष्टमण्डलने क्या किया था?

उत्तरः लोग यह चाहते थे कि सरकार अपराधीको ऐसी सजा दे कि भविष्यमें कोई भी हिन्दू इस प्रकारकी...[१] पुस्तिका छापनेका साहस न करे। किन्तु शिष्टमण्डल चाहता था कि हम इस मामलेको आपसमें ही तय कर लें, क्योंकि हम असहयोगी होनेसे इसे सरकारके पास ले जाना पसन्द नहीं करते थे। शिष्टमण्डलसे जो शर्ते तय हुई थीं वे ये हैं: (१) मामलेका फैसला या तो इस्लामी शर्अ (धार्मिक कानून) के मुताबिक तय किया जाये या देशकी प्रथाके अनुसार किया जाये। सनातन धर्मके सदस्य एक जिरगेमें मुसलमानोंके पास आयें। शिष्टमण्डलने, जिसमें सैयद पीर कमाल भी शामिल थे, हिन्दुओंसे बातचीत की लेकिन बादको जब ये सज्जन मुझसे मिले तब उन्होंने बताया कि हिन्दुओंके रुखके कारण उनका प्रयत्न सफल नहीं हुआ है।

प्रश्न: क्या उस समय पण्डित अमीरचन्द [२] भी वहाँ थे?

उत्तर: हाँ, साहब, वे भी वहाँ थे। जब शिष्टमण्डल जनताके सामने इस मामलेके बारेमें मुझसे बातचीत कर रहा था तब लोग उनका बहुत तिरस्कार कर रहे थे और खिलाफतियोंको भी गालियाँ दे रहे थे। उनके बारेमें वह अफवाह फैलाई गई थी कि उन्हें कोहाटके हिन्दुओंने घूसके तौरपर दस हजार रुपये दिये हैं; इसलिए वे लोग हमारी धार्मिक भावनाओंको परवाह नहीं कर रहे हैं। और हमें ऐसे महत्त्वपूर्ण मामलेमें भी चुप रहनकी सलाह दे रहे हैं।

प्रश्न: पीर साहबका कहना है कि जिरगेका मामला उनके सामने नहीं लाया गया।

(उनको मौलवी अहमद गुलका पिछला वक्तव्य पढ़कर सुनाया गया और सैयद पीर कमाल और दूसरे लोगोंने भी यह बात समझाई।)

प्रश्न: जब शिष्टमण्डल, सैयद साहब और पीर साहबने आपसमें बातचीत की तब उन्होंने हिन्दुओंके सामने रखनेके लिए क्या शर्ते तय की थीं?

उत्तर: हमने हिन्दुओंसे बात करना भी छोड़ दिया था, क्योंकि ऐसा करनेसे मसलमान चिढ़ते थे। मैंने शिष्टमण्डलसे अनुरोध किया था कि वह लोगोंको, जो उस समय धर्मके गहरे रंगमें डूबे हुए थे, उनकी बात मानकर शान्त करे।

प्रश्न: आप सबने इस मामलेके बारे में क्या सोचा था

उत्तर: हम उस घरमें लगभग डेढ़ घंटेतक रहे। यह ५ सितम्बरकी बात है, ४ सितम्बरकी नहीं। मैं ४ सितम्बरको सिर्फ पेशावर शिष्टमण्डलसे मिला था जिसके सदस्य मेरे मेहमान थे।

प्रश्न: जब आप लोग ५ सितम्बरको इकट्ठा हुए तब आपने हिन्दुओंको सलाह देनेके बारेमें क्या फैसला किया था?

उत्तर: मैंने फैसला किया था कि मामला सरकारको सौंप दिया जाये, किन्तु शिष्टमण्डल यह नहीं चाहता था। जब शिष्टमण्डल और इन दो सज्जनोंने आपसमें बातचीत की तब कुछ भी निर्णय नहीं हुआ।

 
  1. मूलमें यहाँ जगह खाली है।
  2. पेशावरके खिलाफत शिष्टमण्डलके एक सदस्य।