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पत्र: शौकत अलीको

आपने तथ्योंपर जितनी गहराईसे गौर किया है, उससे ज्यादा गहराई तक आप जायें और देखें कि क्या फिरसे गौर करनेकी जरूरत है। मैं आपका वक्तव्य प्रकाशित करनेके विचारतक से काँप उठता हूँ। उसके प्रकाशनसे कटुतापूर्ण विवाद छिड़ जायेगा। इसलिए मैं तो यह भी सुझाव दूँगा कि हकीम साहब या डा० अंसारी पूरे मामलेकी जाँच कर लें। इस प्रश्नपर कोई नये विचार या तथ्य सामने आयें तो मुझे बड़ी ही खुशी होगी। मैं यह भी चाहूँगा कि सभी मित्र तथ्योंपर विचार करें और हम दोनोंको अपनी-अपनी राय बदलनेको प्रेरित करें। लेकिन यदि एक ही निष्कर्षपर पहुँचनेके हमारे सभी उपाय विफल हो जायें तो हमें जनताके समक्ष अपने मतभेद प्रस्तुत करने और उसपर यह बात जाहिर कर देनेका साहस अवश्य करना होगा कि इन मतभेदोंके बावजूद हम दोनोंके बीच प्रेम बना रहेगा, और हम साथ-साथ काम करते रहेंगे। किन्तु इसी प्रेमका तकाजा है कि हम जल्दबाजीमें कोई कदम न उठायें। क्या आप दिल्ली आ रहे हैं? यदि आ रहे हैं, तो क्यों न हम साथ-साथ सफर करें? मैं २६ तारीखको छोटी लाइनसे रवाना होऊँगा। यदि आप आ रहे हों और आप पंजाब मेलसे रवाना हो सकें, तो मैं आपको बड़ौदामें मिल जाऊँगा। अच्छा हो कि हमारी बातचीत फुरसतसे हो। और ऐसी बातचीतके लिए तो मुझे रेलगाड़ी ही सबसे अच्छी जगह जान पड़ती है। आप जो निश्चित करें उसकी सूचना अवश्य दीजिए; और हो सके तो तार दीजिए। वक्तव्यको मैं इस सप्ताह प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ।

सस्नेह,

आपका,
मो० क० गांधी

[पुनश्च:]

मुझे खुशी है कि आप डा० कूनेन की पद्धतिसे इलाज कर रहे हैं। निश्चय ही आपको काफी व्यायाम की जरूरत है।

मो० क० गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस एन १०५२४) की फोटोन-कल से।