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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेके तीन कारण बताये गये हैं। वे नगरपालिकाके कर्मचारी नहीं हैं, उनमें से कुछ लोग ज्यादा किराया देने योग्य हैं और कुछ ऐसे अवांछनीय, सज़ायाफ्त्ता लोग हैं। बेदखल किये गये लोगोंकी ओरसे यह दलील दी गई है कि वे नगरपालिकाके कर्मचारियोंके निकट सम्बन्धी हैं, वे बरसोंसे नगरपालिकाकी इन चालोंमें रहते आये हैं और उनके विरुद्ध बेदखलीकी कार्यवाही नगरपालिकाके उन भ्रष्ट कर्मचारियोंके कहनेसे की गई है जिनको ये बेदखल लोग रिश्वत नहीं दे सके। नगरपालिकाके कमिश्नरकी रिपोर्टमें कहा गया है:

कुछ साल पहले श्री गांधीने इन चालोंको देखने और जाँच करनेके बाद यह विश्वास व्यक्त किया था कि (भ्रष्टाचारके सम्बन्धमें) जो साक्षी दी गई है और जो बातें कही गई हैं वे ऐसी हैं कि उन्हें कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति नहीं मान सकता।

मुझे याद नहीं आता कि मैंने कभी ऐसी बात कही थी; लेकिन रिश्वतका सवाल असंगत है। यदि यह सिद्ध भी किया जा सके कि नगरपालिकाका कोई भी कर्मचारी रिश्वत नहीं लेता है तो भी 'जहाँतक दलित वर्गोका सम्बन्ध है' उनमें से उन लोगोंकी बेदखली जो नगरपालिकाके कर्मचारी नहीं हैं सिद्धान्ततः अनुचित है। इनका मामला एक विशिष्ट मामला है। ऐसी कोई जगह ही नहीं है, जहाँ वे चले जायें। वे सस्ती रिहायश पानेके लोभसे नगरपालिकाकी चालोंमें इकट्ठे नहीं हुए हैं; वे वहाँ इसलिए रहते हैं कि उन्हें कोई दूसरे मकान मिल ही नहीं सकते। मैं मानता हूँ कि निगमका यह कर्त्तव्य है कि वह दलितवर्गीय कर्मचारियोंके सम्बन्धियोंको उनके साथ रहने दे, इतना ही नहीं, बल्कि उसे उन वर्गोके लिए काफी और अच्छी अतिरिक्त रिहायशका प्रबन्ध भी करना चाहिए। निगमको ऐसी रिहायशके लिए उचित किराया वसूल करनेका हक होगा। मैं दलित वर्गोके बहुत ही सम्माननीय सदस्योंके कुछ उदाहरण जानता हूँ जिन्हें ऊँचेसे-ऊँचे किरायपर भी मकान नहीं मिल सके हैं। मालिक इन वर्गोके लोगोंको अपने मकान किरायेपर नहीं देना चाहते। जो लोग नगरपालिकाके कर्मचारी नहीं हैं और नगरपालिकाकी चालोंमें रहते हैं उनके विरुद्ध नगरपालिकाकी समितिकी या कमिश्नरकी आपत्ति उचित तभी हो सकती है जब वह किसी दूसरे वर्गके बारेमें हो। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि इस मामलेपर पुनर्विचार किया जायेगा और दलित वर्गोके जो लोग बेदखल किये गये हैं उनमें से हरएकके रहनेका प्रबन्ध कर दिया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-३-१९२५