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टिप्पणियाँ--२
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जानेकी बड़ी इच्छा थी; परन्तु जा नहीं पा रहा हूँ और इसका मुझे बड़ा खद है। मैंने फरीदपुरके मित्रोंको सूचित भी कर दिया है कि मेरी उपस्थिति निश्चित न मानें। मैंने उनसे कह दिया है कि आजकल मेरा आना-जाना अनिश्चित रहता है। मेरी स्थिति दयनीय है। बिहार, वर्धा, उड़ीसा, आन्ध्र तथा कितनी ही दूसरी जगहोंसे मुझे निमन्त्रण हैं। मैं सभी जगह जाना पसन्द करूँगा। पर मैं सब जगह एक साथ नहीं जा सकता। इसीलिए मुझे यह निर्णय करना होगा कि कहाँ पहुँचकर मैं ज्यादासे-ज्यादा सेवा कर सकूँगा। मैं महसूस करता हूँ कि अभी फिलहाल मेरा स्थान वाइकोमके वीर सत्याग्रहियोंके बीच ही है। यह बड़ा पुराना वादा है। वे छोटीसे-छोटी बातमें सत्याग्रह-सिद्धान्तका पालन करना चाहते हैं। उनकी तादाद थोड़ी है। वे बड़ी विपरीत परिस्थितिमें भी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। अबतक मैंने उन्हें बाहरसे आर्थिक तथा अन्य प्रकारकी सहायता नहीं लेने दी है। अब उनके प्रति मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं सत्याग्रहके एक विशेषज्ञके नाते वहाँ जाऊँ, उनका निर्देशन करूँ और उनके सामने जो दिक्कतें पेश हैं उनसे निपटने में उनकी हिम्मत बढ़ाऊँ। वहाँ जानेकी बात बहुत दिनोंसे टलती ही जा रही थी। आशा है, दूसरे प्रान्तोंके सज्जन इसपर आपत्ति नहीं करेंगे।

एक बात और। मैं समझता है कि मेरे बाइकोम जानेसे सत्याग्रहियोंको कुछ सहायता मिलेगी; लेकिन अन्य प्रान्तोंमें उसका प्रदर्शनके सिवा और कोई उपयोग नहीं है। उन्हें तो मैं एक सीधी बात बताता हूँ। अपने-अपने स्थानीय झगड़ोंको निबटा लीजिए---वे चाहे हिन्दू-मुसलमानोंमें हों, चाहे ब्राह्मणों-अब्राह्मणोंमें हों। जितना आपसे हो सके उतना चरखा कातिए, सदा खादी पहनिए और आप कांग्रेसके लिए सूत कातनेवाले जितने सदस्य बना सकते हों, बनाइए। इसके साथ ही ऐसे सदस्य भी बनाइए जो खुद भले ही न कातें फिर भी हर माह २,००० गज सूत दूसरेसे कतवा कर दें। अपने जिले या प्रान्तके दलित-पीड़ित भाइयोंकी जिस तरह हो सके मदद कीजिए। अपने मुकामको शराब और अफीमकी कुटेवसे मुक्त कीजिए। इतना हो चुकनेपर काम बढ़ानेकी दृष्टि से मुझे बुलाइए। अगर हम यह चाहते हों कि आगामी वर्षके प्रारम्भ तक आशाका अरुणोदय हो जाये तो हमें चाहिए कि इस शान्तिके वर्षमें हम अपनी तमाम शक्ति राष्ट्र के इस रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करने में लगावें। सरकार क्या करती है, इसकी परवाह किये बिना बंगाल अध्यादेशके रहते हुए भी हमें अपना काम जारी रखना चाहिए। यदि हम चाहते हों कि यह अध्यादेश रद हो जाये तो उसके लिए हमें काफी शक्ति उत्पन्न करनी चाहिये। मेरी दृष्टिमें उसका एक ही उपाय है; और वह है अपनी पूरी शक्तिके साथ रचनात्मक कार्यक्रममें लग जाना।

पुनर्विचारके योग्य

बम्बई नगर-निगम द्वारा बनवाई गई चालोंमें रहनेवाले कुछ दलित वर्गके लोग बेदखल कर दिये गये थे। निगमने उस सम्बन्धमें जाँच करनेके लिए एक समिति नियुक्त की थी। दलित वर्गोके प्रख्यात हितैषी श्री अमृतलाल ठक्करने मुझे उस समितिकी रिपोर्ट की एक प्रति भेजी है। इन गरीब स्त्री-पुरुषोंको चालोंसे बेदखल