१४१. पत्र: जनकधारी प्रसादको
गाड़ी में
६ मार्च, १९२५
आपका पत्र इतने सारे दिनोंसे मेरे साथ-साथ घूम रहा है। मैं यह पत्र मद्रास जाते हए गाड़ीमें लिख रहा हूँ। बेलगाँवमें किसीकी उपेक्षा करनेका मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन मैं क्या करता? मेरे पास वैयक्तिक बातचीतके लिए एक क्षण भी नहीं था। इसलिए मैंने अपने हृदयको कठोर बना लिया।
आप उदास हैं। किन्तु यह उदास होनेका समय नहीं है। हम अपनी पूरी योग्यताके साथ अपना दैनिक कार्य करें और प्रसन्न रहें। जीवनको पुस्तकमें निष्ठाके साथ किये गये सभी कार्योका मूल्य एक ही है। फिर चिन्ता क्यों करें?
आपने कोई निश्चित प्रश्न नहीं पूछे हैं; किन्तु यदि ऐसे निश्चित कोई प्रश्न हों तो पूछनेमें संकोच न करें। इस बातका विश्वास रखें कि मेरे लिए आप जो पहले थे, आज भी वही हैं। चम्पारनके सच्चे सहयोगियोंकी स्मृतिको तो मैं एक निधिके समान संजोये हुए हूँ। इससे अधिक सच्चे लोगोंके साथ न तो मैंने पहले कभी काम किया और न आगे आशा है। यदि इस प्रकारके लोग सारे भारतमें मिल जायें तो स्वराज्य आनेमें विलम्ब न हो।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ४८) की फोटो-नकलसे।
१४२. तार: 'नवजीवन'को
मद्रास
६ मार्च, १९२५
डाकसे सोलह कालम सामग्री रवाना। एन्ड्रयूजका लेख अवश्य दें। मेरे लेखोंमें से एकाध निकाला जा सकता है।
अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।
१. सन् १९१७ के चम्पारन आन्दोलनमें गांधीजीके सहयोगी कार्यकर्त्ता।