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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है तो आज अभी, हो; और लड़े बिना काम न चले तो लड़ाई भी आज ही हो ले। किन्तु हर सरतमें हम ब्रिटिश हस्तक्षेपसे अपनेको बचायें।" मैं जानता है कि इसमें उनकी मदद लेना एक बहुत बड़ा प्रलोभन है, बहरहाल मुझे तो इससे बचना ही है फिर यह प्रलोभन बड़ा हो, चाहे छोटा। भारतके हर गाँव या गली-कचेमें थर्मापोलीके दृश्य उपस्थित हो जानेपर भी मझे स्वराज्यका उदय दीख पड़ रहा है। परन्तु शस्त्रोंकी बदौलत इन दो जातियोंके बीच स्थापित शान्तिमें मझे स्वराज्यके दर्शन नहीं होते। उचित समझौता होनेसे पहले जितनी आवश्यकता अंग्रेजोंके हृदय-परिवर्तनकी है, उतनी ही हिन्दुओं और मुसलमानोंके हृदय-परिवर्तनकी भी है।

एक प्रतिनिधिने पूछा, "लेकिन आपकी सलाहपर चलेगा कौन?" महात्माने उत्तर दिया:

मैं चलूँगा, क्या इतना काफी नहीं है? क्या मुझे अपने विश्वासको इसलिए छोड़ देना चाहिए कि उसका कोई अनुसरण नहीं करेगा।

एक प्रतिनिधिने कहा, "अब भी यह मेरे प्रश्नका उत्तर नहीं हुआ?" महात्माने कहाः

आपकी यह शिकायत उचित है, फिर भी मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। मैं जानता हूँ कि इस समय मेरी कोई नहीं सुनता। लोग सरकारके पास जायेंगे और ऐसी परिस्थितिमें शायद कोई भी वैसा ही करता जैसा कि अंग्रेज कर रहे हैं, अर्थात् दोनोंको विभक्त करके शासन करनेकी कोशिश करता। जो लोग अपने ऊपर दूसरोंका शासन चाहते हैं उनके साथ और किया भी क्या जा सकता है? इसलिए हिन्दू-मुस्लिम समस्या इस समय बहुत जटिल बन गई है। मैं अपनेको इससे बाहर रखना चाहता हूँ। जब मेरी आवश्यकता पड़ेगी तब मैं इसमें हाथ डालूँगा। मैं ईश्वरपर सिद्धान्तके रूपमें नहीं, बल्कि तथ्यके रूपमें विश्वास करता हूँ। उसका अस्तित्व जीवनके अस्तित्वसे भी अधिक यथार्थ है। इसलिए मुझे उसका भरोसा करना चाहिए। आवश्यकता पड़नेपर वह इस प्रश्नके सम्बन्धमें मुझे राह सुझायेगा जैसा कि आज तक सुझाता रहा है। इस बीच चरखा और अस्पृश्यता, दोनों मुझे और मेरी तरह सोचनेवालोंको व्यस्त रखनेके लिए काफी हैं।

"किन्तु, क्या आप उन लोगोंको भी जो कि आपकी सलाहपर चलेंगे, ठोस सुझाव नहीं देंगे?" यह अन्तिम प्रश्न था।

मुझे उनके बारेमें सोचना ही होगा। किन्तु मैं जबतक यह नहीं देखता कि मेरे द्वारा सुझाया गया उपाय समुचित प्रकारसे कार्य करेगा तबतक मैं अपने बीच प्रचलित सिद्धान्तोंमें एक और जोड़कर स्थितिको अधिक पेचीदा नहीं बनाना चाहता।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ६-३-१९२५

१. यूनानमें, पार्टी निवासियोंने ई० पू० ४८० में ईरानियोंके आक्रमणका बहादुरीके साथ सामना करते हुए वीरगति पाई थी।