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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मार देने के लिए वाइकोम जा रहा हूँ। मुझे आशा है कि वे मुझे कट्टरपन्थी दलके पास जाने और उनका दृष्टिकोण समझनेकी अनुमति देंगे। सत्याग्रह हिंसात्मक संघर्ष नहीं है; बल्कि वह हृदय परिवर्तन करने तथा सच्ची धारणा उत्पन्न करनेका प्रयास है; इसलिए कट्टरपन्थी दलका दृष्टिकोण समझने तथा अपना दृष्टिकोण उनके सामने रखनेका मैं कोई भी अवसर हाथसे नहीं जाने दूँगा। यदि महाविभव महारानी अनुग्रहपूर्वक मुझे मिलनेकी अनुमति देंगी तो मैं आशा करता हूँ कि मैं उनसे भी मिलूँगा। साथ ही मैं दीवान और अन्य सम्बन्धित अधिकारियोंसे भी मिलूँगा।

मेरे लिए अस्पृश्यताका प्रश्न एक गम्भीर धार्मिक प्रश्न है। जो लोग अछूत नहीं हैं, उनके लिए यह प्रायश्चित्त और शुद्धीकरणका मामला है। यह हिन्दू धर्मके मूल तत्त्वसे सम्बन्धित सुधार है। (हर्षध्वनि)। इसलिए यदि आप गहरे विश्वासके साथ मेरे उद्देश्यकी सफलताके लिए प्रार्थना कर सकें तो उससे मुझे बड़ी मदद मिलेगी।

मैं जानता हूँ, कि मेरे यहाँ आ जानेपर आप मुझसे यह आशा करते होंगे कि मैं भारतके सामने उपस्थित वर्तमान समस्याओंके बारेमें कुछ कहूँगा। किन्तु आप मुझसे यह आशा न करें कि मैं इस प्रश्नके उस पहलपर जिसे राजनीतिक पहल कह सकते हैं, कुछ कहूँगा। उसमें मेरी दिलचस्पी नहीं है। कांग्रेस संगठनका तो यह एक बड़ा जरूरी अंग है; किन्तु मैं अपनेको उससे जान-बूझकर दूर रख रहा हूँ।

इसके प्रति मेरी स्वाभाविक रुचि नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब भी कदापि नहीं है कि दूसरे लोग भी इस कार्यक्रमके प्रति निष्ठा न रखें या उसे अनावश्यक समझें। मेरे लिए मेरा जीवन-कार्य निर्दिष्ट है। मैं निश्चित रूपसे जानता हूँ कि यदि हम सुधार अन्दरसे शुरू करें तो बाहर सुधार उसी तरह हो जायेगा, जैसे रातके बाद दिन होता है। मुझे इस बातका भी उतना ही विश्वास है कि जबतक सुधार अन्दरसे नहीं होता; तबतक बाहरसे किया गया कोई भी सुधार सफल नहीं होगा। विधान परिषद् या विधान सभामें किया गया तथा लन्दनमें आपकी ओरसे किये जानेवाले सभी प्रयत्न पूरी तरह विफल हो जायेंगे। जो लोग इस गतिविधिमें भाग ले रहे हैं, यह बात उनकी आलोचना करनेके लिए नहीं कही गई है, बल्कि इस तथ्यपर जोर देनेके लिए कही गई है कि आपको और मुझे, जनताके हर साधारण आदमीको, अपनी चिन्ता स्वयं करनी होगी। यह इस तथ्यपर जोर देनेके लिए कही गई है कि यदि आप और मैं उस कार्यक्रमको पूरा करनेके लिए सहायता पहुँचाना चाहते हैं तो हमें यह कार्य अपनेसे शुरू करना होगा। यदि हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेका सिर फोड़नेके लिए तैयार रहते हैं तो आपकी परिषदें क्या कर सकती हैं? यदि हम हिन्दू अपने ही भाइयोंके पंचमांशका बहिष्कार किये हुए हैं तो हमारे पार्षद परिषदोंमें क्या कर सकते हैं? यदि हम चरखा न चलायें और खद्दर न पहनें और इस प्रकार अपने दलित और गरीब देशभाइयों के साथ एकरूप नहीं हो जाते तो फिर वे बेचारे कर ही क्या सकते हैं? मुझसे समय-असमय, अनेक बार कहा गया है कि जबतक हमारे इस विशाल देशमें लोगोंको आवेश नहीं दिलाया जाता तबतक यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता। किन्तु कृपया यह याद रखें कि स्वराज्य आवेश