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भाषण: त्रिचूरमें

श्री नारायण गुरु स्वामीने धर्मका जो आदर्श सम्मुख रखा है, उसकी ओर द्रुत गतिसे अग्रसर होंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ५-४-१९२५ (परिशिष्टांक)


१८५. भाषण: त्रिचूरमें

१८ मार्च, १९२५

मुझे इस रमणीय प्रदेशमें और अधिक न ठहर सकनेका दुःख है। अब मुझे इसे छोड़कर जाना पड़ेगा। नहीं जानता फिर अब यहाँ कब आ सकूँगा। मुझे यहाँ जो अगाध प्रेम मिला है उसके बीचसे जाना मेरे लिए कठिन हो रहा है। यहाँ चारों तरफ मैंने जो मनोरम दृश्य देखे हैं उन सबकी याद मेरे मनमें सदा बनी रहेगी; किन्तु इन सभी सुखद अनुभवोंके साथ एक कटु अनुभव भी मेरे मन में खटकता रहेगा। मैंने देखा कि यह सुन्दर प्रदेश अस्पृश्यता और अनुपगम्यताके अभिशापसे ग्रस्त है। किन्तु एक बातकी ओर मेरा ध्यान अभी दिलाया गया है कि इन दो बातोंके अतिरिक्त इस प्रदेशमें "अदृश्यता" का शाप भी है; यहाँ लोगोंको देखनेसे भी पाप लगता है। यदि इसीको हिन्दू धर्म कहते हैं तो मैं आज ही उसे छोड़नेको तैयार हूँ। लेकिन मैं अपनेको सनातन हिन्दू मानता हूँ, और मेरा पालन-पोषण रूढ़िवादी परिवारमें हुआ है, इसलिए मैं जानता हूँ कि आज अस्पृश्यता, अनुपगम्यता तथा अदृश्यताको जिस रूपमें माना जा रहा है वह हिन्दू धर्मका अंग नहीं है। लेकिन मैं यह आशा लेकर इस प्रदेशसे जा रहा हूँ कि वे सभी लोग, जो इस प्रकारकी सभाओंमें शामिल हुए हैं और अभिनन्दन-पत्रोंमें जाति-प्रथाके विरुद्ध व्यक्त की गई भावनाओंसे सहमत हैं, इस कलंकको त्रावणकोर और कोचीनसे दूर करनेका प्रयत्न करेंगे।

मैंने त्रावणकोर और कोचीनमें हजारों बहनोंको देखा है। उन्हें सुन्दर श्वेत वेशभूषामें देखना मेरे लिए एक लुभावना और भव्य दृश्य रहा है। किन्तु मुझे यह देखकर उतना ही दुःख भी हुआ कि वे खद्दरके स्थानपर मिलके बने कपड़े पहनती हैं। यदि आप खद्दर पहनना चाहते हैं तो आप सभी स्त्री-पुरुष बिना किसी कठिनाई और विलम्बके ऐसा कर सकते हैं। यह बहुत दिनोंकी बात नहीं है जबकि मलाबारके प्रत्येक घरमें चरखा होता था। मैं आपसे कहता हूँ कि आप प्रत्येक घरमें फिरसे चरखकी स्थापना करें। आपके पास अब भी हजारों एजवाहा बुनकर हैं, जो सुन्दर कपड़ा बुनते हैं। आप कताई करें और वे आपके काते सूतसे आपके लिए कपड़ा बुनेंगे। यदि आप केवल इतना ही करें तो आपको मालूम हो जायेगा कि आपने अपने देशके लिए लाखों रुपये बचा लिये हैं। त्रावणकोर और कोचीन दोनोंको मिला

१. यह भाषण नगरपालिका, नम्बूद्री योग-क्षेम सभा तथा त्रिचूरके छात्रों द्वारा तेकिंकाड मैदानमें आयोजित सभामें अभिनन्दन-पत्र भेंट किये जानेपर दिया गया था।

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