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१९७. टिप्पणियाँ

निर्वयता

मैं इन टिप्पणियोंको कोचीन त्रावणकोरमें लिख रहा हूँ। वाइकोमके स्टीमरमें सवार होनेको जाते समय रास्तेमें, बहुत सुन्दर दृश्योंके बीच वाइकोममें मैंने जो एक असह्य दृश्य देखा उसकी स्मृति मनसे नहीं जाती। कोचीनके लोग घोड़ागाड़ियों और मोटरोंका उपयोग बहुत कम करते हैं; वे गाड़ी खींचनेमें मनुष्यका उपयोग करते हैं। वहाँ जापानी ढंगकी रिक्शा सर्वत्र दिखाई देती है। रिक्शाओंको देखकर तो मुझे अधिक आघात नहीं लगा, क्योंकि वे तो मैंने डर्बनमें बहुत देखी थीं। किन्तु जब मैंने देखा कि तीन-चार लोग एक साथ रिक्शामें लदे हुए हैं तो मेरी इच्छा हुई कि मैं अपनी गाड़ीमें से उतर कर रिक्शा कुलीकी सहायता करूँ। मुझे अपने रास्तेपर आगे बढ़ना था और मेरा इस प्रकार उतर कर सहायता करना सम्भव नहीं था। किन्तु मनमें इसका घाव रह गया है। यह रिक्शा एक ही मनुष्यके बैठनेके लायक बनाई गई है। हो सकता है कि यदि रिक्शा कुली इनकार करे तो उसमें इतने लोग न चढ़ें। किन्तु इससे सवारियोंके मनमें दयाभाव नहीं है, मेरा यह विचार नहीं कटता। जरूरतमन्द आदमी न करने योग्य हजारों काम करता है। वह पेटके बल रेंगता है और जाने क्या-क्या काम करता है। किन्तु जो इन कामोंको अविचलित भावसे देखते रहते हैं, उनके सम्बन्धमें क्या कहा जाये? जो उन्हें ऐसा करने के लिए विवश करते हैं, उनके बारेमें तो कहना ही क्या है? हो सकता है कोचीनमें रिक्शामें एकसे अधिक सवारी न बैठानेका नियम भी हो। यदि ऐसा हो तो सवारियाँ दोहरा अपराध करती हैं। कोचीनमें गुजराती बहुत रहते हैं। वे प्रभावशाली लोग हैं। मैंने रिक्शामें जो लोग बैठे देखे, वे लोग मलाबारी थे। गुजराती भी ऐसा करते हैं या नहीं यह मैं नहीं जानता। किन्तु मुझे आशा है कि गुजराती इतनी निर्दयता न करते होंगे। मैं तो उनको कोचीनकी सेवाका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। वे कोचीनमें ऐसा लोकमत तैयार करें कि कोई भी मनुष्य रिक्शेका दुरुपयोग कदापि न करे। मैं तो उनको रिक्शेका उपयोग बन्द करनेकी सलाह भी दूँगा। रिक्शेका उपयोग बन्द करने से उन्हें जो थोड़ा बहुत श्रम करना होगा, उससे उनका स्वास्थ्य भी सुधरेगा। जबतक कोई मनुष्य रोगी या अशक्त न हो तबतक उसका दूसरे मनुष्यपर चढ़कर चलना पाप है। हम मनुष्यका उपयोग पशुकी तरह कैसे कर सकते हैं? जिस कामको स्वयं हम करनेके लिए तैयार न हों उसे किसी दूसरेसे कैसे करा सकते हैं?

पतिका कर्त्तव्य

एक भाई प्रश्न करते हैं कि यदि पत्नी संयम-धर्मके पालनमें पतिकी सहायता न करे तो पतिको क्या करना चाहिए? मेरा अनुभव तो यह कहता है कि संयमके पालनमें एकीक दूसरे की अनुमतिकी जरूरत नहीं। भोगके लिए दोनोंकी रजामन्दी