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होनी चाहिए। त्याग तो प्रत्येकका खास क्षेत्र है। परन्तु ऐसी बातोंमें विवेककी बहुत आवश्यकता रहती है। संयमको सच्चा संयम होना चाहिए। पुरुषको चाहिए कि वह अपने मनको खूब जाँच ले। विवेक और शुद्ध प्रेमसे पति पत्नीको अपने संकल्पसे सहमत कर सकता है। हाँ, यह सम्भव है कि पतिने जितना ज्ञान प्राप्त किया है उतना पत्नीने न किया हो। अतः पतिका धर्म है कि वह पत्नीको भी अपने ज्ञानमें भागी बनाये। इस तरह जहाँ गृहस्थी विवेकपूर्वक चलती हो वहाँ संयमके पालनमें कठिनाई नहीं पड़ती। मेरा यह अनुभव है कि संयमके पालनमें स्त्री ही आगे रहती है। पति ही उसमें बाधा डालता है। इस कारण यह प्रश्न मुझे बेतुका मालूम होता है। फिर भी जवाब देना उचित समझकर यहाँ कुछ संकोचके साथ ही लिखा है।

पिता-पुत्र भेद

पिता धनवान् है और भोगी है। पुत्र त्यागी है और सादा जीवन बिताना चाहता है। पिता रोकता है। पुत्रको क्या करना चाहिए? अपनी अल्पमतिके अनुसार मुझे तो यही लगता है कि पुत्र अपने त्यागभावको न छोड़े। वह विनयके साथ पिताको समझाये। मैं मानता हूँ कि जहाँ पुत्रमें विवेक और दृढ़ता दोनों गुण होते हैं वहाँ पिता बाधक नहीं होता। बहुत बार पुत्रके उद्धत होनेके कारण त्याग भी स्वच्छन्दताका रूप ले लेता है, जिससे पिता चिढ़ जाता है। मैं ऐसे त्यागको त्याग नहीं मानता। शुद्ध त्यागमें इतनी नम्रता होती है कि पिताको वह दिखाई भी नहीं देगा। त्यागको बड़ा स्वरूप देनेकी आवश्यकता नहीं होती। जब मनुष्यके जीवनमें सच्चा त्याग प्रवेश करता है तब पहले उसका ढोल नहीं पीटा जाता। वह चुपचाप आता है और किसीको उसकी खबरतक नहीं होती। ऐसा त्याग ही शोभा पाता है और अन्ततक टिकता है। ऐसा त्याग किसीको भार नहीं लगता और दूसरोंको प्रभावित भी करता है।

अन्त्यजोंका शिक्षक

इस प्रश्नका उत्तर सुगम है। यदि अन्य वर्गों के लिए ६० रुपयेसे ७५ रुपये तक पर शिक्षक रखा जा सकता है तो वह उतने वेतनपर अन्त्यजोंके लिए भी रखा जा सकता है। किन्तु बहुत-कुछ तो शिक्षकके चरित्रपर निर्भर है। कोई विद्यापीठका स्नातक हो जानेसे ही इतने वेतनका पात्र हो जाता है, ऐसा मैं नहीं मानता। मैं चाहता हूँ कि सभी स्नातक चरित्रवान हों। किन्तु ऐसा नहीं होता, यह मैं जानता हूँ। अन्त्यजोंको बुनाईके अतिरिक्त बढ़ई आदिका काम भी सिखाया जा सकता है। किन्तु मैं यथासम्भव बुनाईके धन्धको ही अधिक विकसित करना चाहता हूँ। अधिकांश अन्त्यज बुनाईका काम करते हैं। अन्त्यज बालकोंको इस धन्धेमें पूरी तरह निपुण बनाने में बहुत समय लग सकता है। अन्त्यज बुनकर बारीक सूत अधिक नहीं बुनते। वे बड़ा पना भी नहीं बुन पाते। डिजाइन तो शायद ही बुनते हैं। हमारा काम अन्त्यजोंको बुनाईको समस्त कला सिखाना है। किन्तु हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि

२. यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है।