पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७९
क्या बम्बई सुप्त है?

सेवा क्या जाने? वह स्वराज्यका अर्थ क्या जाने? जिसे हिन्दुस्तानके गांव अच्छे नहीं लगते, जिसे इस देशके रीति-रिवाज अच्छे नहीं लगते और जिसे इस देशका खाना अच्छा नहीं लगता उसके लिए देशकी आजादीका क्या अर्थ हो सकता है? उसकी स्वराज्यकी योजनासे हिन्दुस्तानके किस भागको लाभ हो सकता है?

इसलिए बम्बईके नागरिक स्वराज्य चाहते हैं या नहीं यह नापनेका मापदण्ड खादी-भण्डार है। इस मापदण्डके अनुसार बम्बईकी स्थिति निराशाजनक ही कही जा सकती है।

अब हम अन्त्यजोंकी स्थिति देखें।

अन्त्यजोंको रहने के लिए अच्छे मकान नहीं मिलते, यह कैसी विचित्र बात है? बहतसे अन्त्यजोंको नगरपालिकाके टूटे-फूटे मकान भी छोडने पड़ते हैं। जो उनमें रहते हैं वे भी कठिनाईमें ही रहते हैं। हिन्दू उनको मकान नहीं देते। ऐसी स्थितियोंमें रहते हुए अन्त्यजोंके लिए स्वराज्यका अर्थ क्या हो सकता है? मान लो, बम्बईमें हिन्दू गवर्नर हो, अस्पृश्यताको धर्म माननेवाला मुख्यमन्त्री हो और अन्त्यजोंको मकान न देनेवाले मन्त्री हों, तब ऐसे स्वराज्यमें अन्त्यजोंको स्वतन्त्रताका क्या बोध होगा? जान पड़ता है कि बम्बई इस परीक्षामें भी अनुत्तीर्ण होगा।

अब रहा हिन्दू-मुसलमानोंका प्रश्न। इस सम्बन्धमें जैसी स्थिति अन्यत्र है वैसी ही बम्बईमें है, ऐसा तो नहीं कह सकते। किन्तु यहाँ भी दोनोंमें झगड़े होते रहते हैं। स्थिति ऐसी लगती है, "ऊपरसे तो अच्छी; भीतरकी तो राम जाने" मैं यह सुनता रहता हूँ कि भीतर-भीतर आग सुलग रही है। सन् १९२१ में दोनोंके सम्बन्धोंमें जो मिठास थी वह अब नहीं रही है, उसकी जगह अब कड़वाहट चाहे न हो खटास जरूर आ गई है। सन्देह रूपी नासूर बना हुआ है। एक-दूसरेपरसे विश्वास उठ-सा गया है।

भारतकी प्रथम नगरी, फीरोजशाह मेहताकी राजधानी, दादाभाईकी कर्मभूमि, रानडे, बदरुद्दीन आदि प्रमुख नेताओंकी यशस्थली बम्बई आज सोई-सी लगती है।

मैं यह लेख मद्रासमें सोमवार २३ तारीखको मौनकी शान्ति में लिख रहा हूँ। शुक्रवार २६ तारीखको मुझे बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीसे मिलना है। तभी मुझे वस्तुस्थितिका पता चलेगा। मैं उस भेंटके बाद बम्बईकी स्थितिपर फिर विचार करूँगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-३-१९२५