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तार: मदनमोहन मालवीयको

ईमान रखनेकी और कसम खानेकी बात जैसे बुद्धिसे परे नहीं है, वैसे ही संगसारी भी बुद्धिसे परे नहीं है। धर्मत्यागका व्यापक अर्थ लिया जाये तो उसका मतलब "स्वधर्मका त्याग होता है"। क्या यह इतना बड़ा गुनाह है कि इसकी सजा मौत हो? यदि एसा हो तो जो मुसलमान हिन्दू हो गया है वह फिर यदि इस्लाम स्वीकार कर ले तो उसका यह कार्य भी एक बड़ा गुनाह होगा और इसकी सजा भी मौत होनी चाहिए। मौलाना साहबका कहना है कि मैं कांग्रेसका प्रमुख हूँ और मुसलमानोंका दोस्त हूँ, इसलिए मुझे इस्लामके किसी भी कार्यकी टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए और 'कुरान' के बारेमें कुछ नहीं कहना चाहिए। लेकिन मैं समझता हूँ कि मैं इसे नहीं मान सकता। यदि मैं नाजुक वक्तपर अपना निर्णय न दूँ तो मैं इन दोनों ही सम्मानोंके अयोग्य सिद्ध हूँगा। संगसारीका मामला ऐसा है कि इसके साथ सभी सार्वजनिक विषयोंके निवेदकोंका सम्बन्ध है। यह सामाजिक नीति और सामान्य मनुष्यताका प्रश्न है, जो सभी सच्चे धर्मोंका आधार है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-३-१९२५

२२३. तार: मदनमोहन मालवीयको


बम्बई
२६ मार्च, १९२५

पण्डित म० मो० मालवीय
बिड़ला मिल
दिल्ली

गोरक्षा बैठक बाईस अप्रैलको बम्बईमें बुलानेका विचार। अनुकूल हो तो साबरमती तार दें।

गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।