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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण है कि इस देश में ऐसे लाखों हट्टे-कट्टे लोग जो ईमानदारीसे अपनी रोजी अच्छी तरह कमा सकते हैं, भूखों मर रहे हैं और मारे-मारे फिर रहे हैं? कारण यह है कि उनके पास कोई काम नहीं है और उन्हें कोई काम मिलता भी नहीं है। भारतके कारखानोंमें ज्यादासे-ज्यादा कुछ लाख लोगोंको काम मिल सकता है, लेकिन उनमें देशके करोड़ों भूखों मरते हुए बेरोजगार लोगोंको तो काम नहीं मिल सकता। मैं आप लोगों से इन गरीबोंके लिए पैसा देनको बात नहीं कहता, बल्कि भूखों मरते जन-साधारणके लिए प्रतिदिन कमसे-कम आधा घंटे सूत कातनेका अनुरोध अवश्य करता हूँ। आप इन गरीब स्त्री-पुरुषोंकी खातिर खादी पहनें; आप सभी विदेशी वस्त्रोंका, बल्कि देशो मिलोंके वस्त्रोंका भी त्याग कर दें। जबतक आप ऐसा न करेंगी तबतक आपको स्वराज्य और रामराज्य नहीं मिल सकता। मैं बम्बईकी आप सभी बहनोंको आमन्त्रित करता हूँ कि आप कांग्रेस भवन में होनेवाले राष्ट्रीय समारोहोंमें भाग लिया करें। यह भवन अब इस नगरीमें सारी राष्ट्रीय गतिविधियोंका केन्द्र रहेगा। आप बम्बईको बहनोंने मुझे बहुत-कुछ दिया है, लेकिन मैं आपसे देशके लिए कुछ और माँगता हूँ और वह है चरखेपर प्रतिदिन आधा घंटा कताई करना।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २७-३-१९२५

२३१. भाषण: दलित वर्गवालोंकी सभा, बम्बईमें[१]

२६ मार्च, १९२५

महात्माजीने कहा कि मैं इस देश में अस्पृश्यताके निवारणार्थ जो-कुछ करना चाहता हूँ और अबतक जो कुछ कर चुका हूँ, वह सब आपको बतानेकी कोई जरूरत नहीं है; और यद्यपि मैं स्वीकार करता हूँ कि भारतसे अस्पृश्यता तेजीसे मिटती जा रही है, फिर भी दुखके साथ कहना पड़ता है कि यह रफ्तार मेरे खयालसे काफी तेज नहीं है। आपको मालूम है कि दक्षिणमें त्रावणकोर राज्यमें वाइकोम नामक स्थानमें अस्पृश्य लोग मन्दिरके पासको सड़कपर चलनेके अपने अधिकारको प्राप्त करने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं। ये अस्पृश्य उन हिन्दुओंसे एक विवेक-सम्मत बात मनवाने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं जो धर्मान्धताके कारण आज हिन्दू धर्मके सभी सच्चे सिद्धान्तोंको ओरसे अपनी आँखें बन्द किये हुए हैं। इन सवर्ण हिन्दुओंकी आँखें खोलनेके लिए ही अस्पृश्य लोग वाइकोममें सत्याग्रह कर रहे है। मुझे आशा है कि अन्तमें

१. इस सभामें गांधीजीको उनकी अस्पृश्यता निवारण सम्बन्धी सेवाओंकी प्रशंसा करते हुए एक मानपत्र भेंट किया गया था। एस० वी० पुणताम्बेकरने हिन्दी भाषणका मराठी में अनुवाद किया था। मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।