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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और उसे कभी जमीनपर न गिरने दे। यह झण्डा आपकी समस्त प्रिय और समाद्धृत भावनाओंका प्रतीक है। गांधीजीने कहा कि इस झण्डेको फहराने के साथ भवनका उद्घाटन हो जायेगा। यह भवन तिलक स्वराज्य कोषमें प्राप्त धनसे खरीदा गया है और इस कोषमें सबसे ज्यादा योगदान बम्बईका ही है। भवन कांग्रेसके कार्यके लिए समर्पित कर दिया गया है। इससे आप सभी अधिकाधिक लाभ उठायें। ईश्वरसे मेरी यही प्रार्थना है कि वह हम सबका हृदय शुद्ध बनाये, हम एक-दूसरेके प्रति कोई दुर्भाव न रखें, अपने देशकी सेवा करें, आज हमने जो राष्ट्रीय झण्डा फहराया है उसे कभी न झुकने दें, और कांग्रेसके सदस्य अपने देशभाइयोंके प्रति कोई दुर्भाव न रखें।

इसके बाद, गांधीजीने ध्वज-स्तम्भके पास जाकर वन्देमातरम्के तुमुल नादके बीच धीरे-धीरे झण्डा फहरा दिया।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २७-३-१९२५

२३३. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको


२७ मार्च, १९२५

प्रिय चार्ली,

गुरुदेवकी तबीयतके बारे में पढ़कर बहुत दुःख हुआ। आशा है कि वे इतने बीमार नहीं होंगे जितना तुम्हारे पत्रसे मालूम पड़ता है।

मैं संतति-नियमनके बारेमें तुम्हारी बातें समझता हूँ। मैं अब तो इस बहसमें पड़ ही गया हूँ। इसलिए तुम 'यंग इंडिया' के अंकोंमें इस विषयकी विवेचना देखोगे।

मेरा तो निश्चित मत है कि बनारसीदासके [१] पूर्वी आफ्रिका जानेसे लाभ नहीं होगा; हाँ, अगर वे वहाँ कुछ दिन ठहर सकेंगे तो होगा।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९६३) की फोटो-नकलसे।

१. बनारसीदास चतुर्वेदी।