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२३४. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रके अंश

चैत्र सुदी ३ [२८ मार्च, १९२५][१]

तुम किस बातके आधारपर कहते हो कि मेरी रिपोर्ट लँगड़ी पड़ गई है। क्या मैंने उसमें कोई बात छोड़ दी है? मैंने पहले जो लिखा था वह तुमने देखा था न? किन्तु यदि मैं कमजोर पड़ जाऊँ तो भी तुम सब लोग, जिन्होंने सब बातें समझी हैं, अपने-अपने विचारोंपर दृढ़ रहते हुए न्यायबुद्धि और अहिंसावृत्तिका त्याग नहीं करोगे, तो मुझे सन्तोष होगा। [२]

इस बार आनन्दसे [३] मिलने नहीं आ सका, इससे मेरा मन दुःखी हुआ है। किन्तु मैं मजबूर था। अबकी बार आऊँगा तो उससे जरूर मिलूँगा।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी

{{c|२३५. तार: 'इंग्लिशमैन' को [४]

साबरमती
[२९ मार्च, १९२५ के पश्चात्]

देशबन्धु दाससे परामर्श किये बिना और फलितार्थोंको समझे बिना, कोई वक्तव्य देते हुए झिझकता हूँ। हाँ, सामान्यत: इतना कहने में हर्ज नहीं कि सम्मानपूर्ण शर्तोंपर सभी दलोंसे किसी भी समय सहयोग सम्भव है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३-४-१९२५

१.साधन-सूत्रके अनुसार।

२. इसके बादकी पंक्तियाँ साधन-सूत्र में अलग दी गई हैं। सम्भवत: ये इसी पत्रसे उद्धृत की गई हैं।

३. गांधीजीकी भानजी।

४. यह तार इंग्लिशमैनके उस तारके उत्तर में भेजा गया था जिसमें गांधीजीसे चित्तरंजन दासके २९ मार्चको प्रकाशित किये गये घोषणापत्रपर अपने विचार प्रकट करनेका अनुरोध किया गया था। श्री दासने घोषणापत्रमें कहा था:"...भारत और ब्रिटेनमें रहनेवाले यूरोपीयोंके मनमें यह शंका बहुतकुछ घर कर गई है कि स्वराज्य दलने राजनीतिक हत्याओं और भय-संचारको प्रोत्साहित किया है, और अब भी कर रहा है।...मैं तो सिद्धान्तत: किसी भी शक्लमें और किसी भी तरहकी राजनीतिक हत्याओं और हिंसाके खिलाफ हूँ। मैं और मेरा दल दोनों ही इनको बिलकुल नापसन्द करते हैं। मैं मानता हूँ कि इससे हमारी राजनीतिक प्रगतिमें बाधा पड़ती है।...मैं सरकार द्वारा किये जानेवाले किसी प्रकारके दमनके भी उतना ही खिलाफ हूँ और उसे भी उतना ही नापसन्द करता हूँ।...हम स्वराज्य प्राप्त करने और साम्राज्यके अन्दर समानता और सम्मानपूर्ण भागीदारीकी शर्तोंपर भारतको राजनीतिक समानताका दर्जा दिलानेके लिए कृतसंकल्प है।"