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जो विवाह किये गये इनमें से एक विवाह आश्रममें पालित एक कन्याका था। दूसरा वल्लभभाईके पुत्रका [१] और तीसरा डा० मेहताके पुत्रका [२] था। तीनों विवाह एक ही दिन किये गये थे और उसी दिन निबटा दिये गये थे। इनमें दोनों पक्ष खादीके कपड़े ही काममें लाये। विवाहोंमें ढोल, शहनाई, भोज इत्यादि कुछ भी नहीं था। इनके लिए न निमन्त्रण-पत्र भेजे गये थे और न बरातें ही सजाई गई थीं। साक्षियोंके रूपमें कुछ मित्र आये थे; किन्तु उनको जानबूझकर शर्बततक नहीं दिया गया था।

विवाह-विधिमें एक भी धार्मिक क्रियाका त्याग नहीं किया गया था; इतना ही नहीं, बल्कि वर और कन्याको जो प्रतिज्ञाएँ लेनी थीं वे पूरी उन दोनोंको गुजरातीमें समझा दी गई थीं। वर और कन्याने और कन्यादान करनेवाले वयोवृद्धजनोंने विधिवत् उपवास रखा था। इस प्रकार गृहस्थ आश्रममें प्रवेश करनेवाले दम्पतीको यह समझा दिया गया कि हिन्दू धर्ममें विवाह संयमकी साधनाके निमित्त है, भोगके निमित्त नहीं। इसके बाद आश्रमकी ईश्वर-प्रार्थनाके साथ दोनोंको आशीर्वाद दिया गया था और विवाहकी विधि समाप्त कर दी गई थी।

इन तीनों विवाहोंमें से एक विशेष रूपसे उल्लेखनीय है। श्री वल्लभभाईके पुत्र चि० डाह्याभाई और श्री काशीभाईकी पुत्री चि० यशोदाका विवाह तो उनकी अपनी इच्छासे हुआ माना जा सकता है। दोनोंने एक-दूसरेको खोजा था और फिर अपने वृद्धजनोंकी आज्ञा लेकर विवाहका निश्चय किया था। दोनोंकी इच्छा साथ-साथ रहकर देश-सेवा करनेकी है। उनकी यह युवावस्थाकी आकांक्षा कहाँतक टिकती है यह तो पीछे ही मालूम होगा। यह पाटीदारोंके लिए आदर्श विवाह कहा जा सकता है। दोनों परिवार प्रसिद्ध हैं और काशीभाई खर्च करना चाहते तो कर सकते थे। फिर भी उन्होंने विचार करके बिना किसी खर्चके विवाह करनेका निश्चय किया। इस प्रकार उन्होंने अपने बहुतसे जाति भाइयोंका रोष अपने ऊपर लिया है। मैं तो आशा करता हूँ कि दूसरे पाटीदार बन्धु और अन्य जातियोंके लोग भी ऐसे विवाह करेंगे और विवाहोंके खर्चका बहुत बड़ा बोझ उठानेसे बच जायेंगे। यदि वे ऐसा करेंगे तो इससे गरीबोंको राहत मिलेगी और धनी लोग अपने धनका उपयोग अपनी इच्छाके अनुसार देश-हितके अथवा धर्मके कार्योंमें कर सकेंगे।

चौथा विवाह श्री देवचन्दभाईकी पुत्री और गजरात विद्यापीठके भाई त्रीकमला शाहका था। [३] यह तेजपुरमें सम्पन्न हुआ। उसमें भी देवचन्दभाईने मुझसे सम्मिलित होनका आग्रह इस हेतुसे किया था कि यह बात प्रकट हो जाये कि विवाहमें बेहद सादगी बरती जायेगी और खादीके ही कपड़े काममें लाये जायेंगे, दूसरे नहीं। साथ ही उनका हेतु वर और वधूको मेरा आशीर्वाद दिलाना भी था। उनके शुद्ध आग्रहको मानकर मैं वहाँ गया था। वहाँ श्री देवचन्दभाईके परिवारके बुलाये हुए बहुतसे स्त्रीपुरुष थे। किन्तु वरकी ओरसे तो वरके अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं था। भाई

१.देखिए "भाषण: विवाहोत्सवपर", २५-२-१९२५।

२. देखिए "तार: आर्यको", २६-२-१९२५।

३. देखिए "टिप्पणियाँ", १९-४-१९२५ के अन्तर्गत उपशीर्षक "भूल सुधार"।