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२४२. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

चैत्र सुदी ६ [३० मार्च १९२५] [१]

भाईश्री घनश्यामदासजी,

आपका खत मीला है।

आपका सूत अच्छा है। जिस पवित्र कार्यका आपने आरंभ कीया है उसको आप हरगीज न छोड़ें।

आपकी धर्मपत्नीके बारेमें आप प्रतिज्ञा ले सकते हैं कि यदि उनका स्वर्गवास होगा तो आप शुद्ध एकपत्नीव्रतका सर्वथा पालन करेंगे। यदि ऐसी प्रतिज्ञा लेनेकी इच्छा और शक्ति हो तो मेरी सलाह है कि आप आपकी धर्मपत्नीके समक्ष उस प्रतिज्ञा लें।

२० हजार रुपयेके लीये मैं जमनालालजीकी दुकानसे पूछंगा।

श्री रायचंदजीसे मेरा खूब सहवास था। मैं नहिं मानता हूं कि सत्य और अहिंसाके पालनमें वे मेरेसे बड़ते थे। परन्तु मेरा विश्वास है कि शास्त्रज्ञानमें और स्मरणशक्तिमें मेरेसे बहोत बड़ते थे। बाल्यावस्थासे उनको आत्मज्ञान और आत्मविश्वास था। मैं जानता हूं कि वे जीवनमुक्त नहिं थे औ [र] वे खुद जानते थे कि नहिं थे। परन्तु उनकी गति उसी दिशामें बड़े जोरसे चल रही थी। बुद्धदेव इ० के बारे में उनके ख्यालोंसे मैं परिचित था। जब हम मीलेंगे तब उस बारेमें बातें करेंगे। मेरा बंगालमें प्रवास मै मासमां शुरू होता है।

अलीगढ़के बारेमें मैंने आपसे रु० २५००० की मागनी की है। हकीमजीका तार भी आपको भेजा है।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१०९) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

१. २५,००० रुपयोंके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र १९२५ में ही लिखा गया होगा।