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३०५. पत्र: मगनलाल गांधीको

वैशाख सुदी १ [२३ अप्रैल, १९२५][१]

चि० मगनलाल,

चि० छोटेलालको यहाँ शान्ति नहीं मिल सकती। वह तो तुरन्त आश्रममें लौट आना चाहता है। उसका कहना है कि जैसा तुम चाहो, वह वैसा करनेके लिए तैयार है। किन्तु उसे हर समय कोई काम चाहिए। मुझे तो लगता है कि चि० छोटेलालको या तो पिंजाईके काममें लगाना चाहिए या बुनाईके काममें। फिर वह चाहे तो तमाम दिन पींजता या बुनता रहे। हमें ऐसे कारीगर भी चाहिए। इससे चि० छोटेलालको किसीके सम्पर्कमें बार-बार न आना पड़ेगा और वह प्रसन्नचित्त रह सकेगा। फिर भी यदि तुमको उसके योग्य कोई दूसरा काम सूझे तो तुम उसे वह काम जरूर दे देना।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०९३) से।

सौजन्य: राधाबहन चौधरी

३०६. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

तिथल
२५ अप्रैल, १९२५

प्रिय चार्ली,

मैंने अपने पत्र-लेखकोंकी, जिनमें तुम भी शामिल हो, बुरी तरह उपेक्षा की है। अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पत्रोंतक का उत्तर नहीं दिया है। किन्तु ऐसा बिलकुल लाचारीसे हुआ है। मैं एक जगहसे दूसरी जगहका दौरा ही करता रहा हूँ। और सांसतक नहीं ले पाया हूँ। बंगालकी आगामी कठिन परीक्षाकी [२] तैयारीके खयालसे मैं चार दिन तिथलमें रहकर कुछ शक्ति संचित कर रहा हूँ। इसके फलस्वरूप पत्रोंका जो ढेर इकट्ठा हो गया है, कमसे-कम उसे थोड़ा-बहुत निबटा सकूँगा।

१. इस पत्रपर "आश्रमकी फाइल" लिखा हुआ है और साथ २७-४-१९२५ की तारीख दी गई है। अनुमानतः पत्र इस तारीखको मिला होगा।

२. बंगाल प्रान्तीय सम्मेलन, फरीदपुरके सिलसिलेमें बंगालकी यात्रा और उसके बादका दौरा।