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३०३. पत्र: वसुमती पण्डितको


तिथल वैशाख सुदी १ [२३ अप्रैल, १९२५] [१]

चि० वसुमती,

मुझे तुम्हारा पत्र मिला। यहाँ मौसम तो अच्छा है। तुम यहाँ होतीं तो कैसा अच्छा होता? यदि मुझे यहाँ ज्यादा दिन ठहरना होता तो तुम्हें जरूर बुला लेता। पर कुल चार दिन ही तो रहना है। किन्तु मेरी सलाह है कि यदि तुम हजीरा न जा सको तो यहाँ आ कर अवश्य रहो। यहाँ मौसम बहुत ठण्डा है और यहाँका पानी भी अच्छा माना जाता है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

मैं २८ तारीखको बम्बई पहुँचूँगा और २९ को कलकत्ताके लिए रवाना होऊँगा। कलकत्ताका पता है: १४८, रसा रोड, कलकत्ता।

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ९२१२) तथा सी० डब्ल्यू० ४६१ की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

३०४. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

तिथल
वैशाख सुदी १ [२३ अप्रैल, १९२५] [२]

आशा है आनन्दका चित्त शान्त होगा। उसके मनमें मृत्युका तनिक भी भय हो तो उसे निर्भय रहनको कहना।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
 
  1. डाकखानेकी मुहर २४ अप्रैल, १९२५ की है।
  2. इन दिनों गांधीजी तिथलमें थे।