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३०७. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको


तिथल२५ अप्रैल, १९२५

प्रिय जवाहरलाल,

मैं तिथलमें हूँ। यह जगह कुछ-कुछ जूहु-जैसी है। यहाँ मैं बंगालकी अग्निपरीक्षाकी तैयारीके लिए चार दिनसे आराम कर रहा है। मैं यहाँ अपना पत्र-व्यवहार निपटानेकी कोशिशमें लगा हूँ। उसमें तुम्हारा वह खत भी है, जिसमें "कांग्रेस और ईश्वर" शीर्षक लेखका जिक्र है। तुम्हारी कठिनाइयोंमें मेरी सहानुभूति तुम्हारे साथ है। चूँकि सच्चा धर्म जीवनमें और संसारमें सबसे बड़ी चीज है, इसलिए इसीका सबसे अधिक दुरुपयोग किया गया है, और जिन लोगोंने इन शोषकों और शोषणोंको तो देखा और वास्तविकताको नहीं देखा, उन्हें स्वभावतः इस वस्तुसे ही अरुचि हो गई। पर धर्म तो आखिर व्यक्तिगत वस्तु और वह भी हृदयकी वस्तु है; फिर चाहे हम उसे किसी नामसे पुकारें। जो चीज मनुष्यको घोर ज्वालाओंके बीच अधिकसेअधिक सान्त्वना देती है वही ईश्वर है। कुछ भी हो, तुम सही रास्तेपर हो। बुद्धि ही एक-मात्र कसौटी हो तो भी मुझे परवाह नहीं, हालाँकि उससे अक्सर मनुष्य गुमराह हो जाता है और ऐसी गलतियाँ कर बैठता है जो लगभग अन्धविश्वासके निकट पहुँच जाती हैं। गोरक्षा मेरे लिए केवल गायको बचानेसे कहीं बड़ी चीज है। गाय तो प्राणि-मात्रका सिर्फ प्रतीक है। गोरक्षाका अर्थ है दुर्बलों, असहायों, गूँगों और बहरोंकी रक्षा। फिर तो मनुष्य सारी सृष्टिका प्रभु और स्वामी न रहकर सेवक बन जाता है। मेरी दृष्टिमें गाय दयाका जीता-जागता उपदेश है। फिर भी हम तो गोरक्षाके साथ निरा खिलवाड़ करते हैं; परन्तु हमें शीघ्र ही वस्तुस्थितिके साथ जूझना पड़ेगा।

आशा है, मेरे पिछले सब पत्र तुम्हें मिल गये होंगे। डा० सत्यपालका[१] मुझे एक दुःखभरा पत्र मिला है। काश तुम, कुछ ही दिनके लिए सही, पंजाब जा सको। तुम्हारे जानेसे उनका उत्साह बढ़ेगा। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे पिताजी दो महीने किसी शान्त और ठंडे स्थानपर रहें, और तुम हफ्ते-दस दिनके लिए अलमोड क्यों नहीं चल जाते, ताकि कामके साथ-साथ ठंडी हवामें भी सांस ले सको?

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]

बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स

 
  1. पंजाबके एक कांग्रेसी नेता।