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परिशिष्ट

कि आज है तबतक यद्यपि सरकार सवर्ण हिन्दुओंके इस कानूनी अधिकारको स्वीकार करती है कि इस प्रतिबन्धको कायम रखा जाये, फिर भी उसकी भावना तो यही हो सकती है कि अगर ये समुदाय अपने कानूनी अधिकारोंपर बहुत आग्रह न रखकर समयकी नब्जको पहचानें और जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी उन धार्मिक विश्वासों और पूर्वग्रहोंको त्याग दें, जो साम्प्रदायिक मेल-जोलके खिलाफ हैं और उस चीजको स्वीकार लें जिसे आज सारी दुनिया आवश्यक और अनिवार्य मानती है तो यह अधिक समझदारीका काम होगा। अपनी शक्तिभर सरकार वैसा हर उपाय करनेको तैयार है जिस उपायसे इस उद्देश्यकी प्राप्ति के लिए दोनों समुदायोंके बीच बातचीत हो सके और वह मेल-जोल स्थापित हो सके जिसकी इतनी आवश्यकता है। सरकारसे इससे अधिक कुछ करनेकी अपेक्षा करना अनुचित है और अगर दोनों समुदाय अपने दृष्टिकोणोंमें परिवर्तन किये बिना आगे भी इसी तरह दुराग्रह करते रहे तो इससे वर्ग-संघर्ष बढ़ेगा और सार्वजनिक शान्ति खतरेमें पड़ जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-३-१९२५