२९. टिप्पणियाँ
चरखोंकी कमी
इन दिनों चरखेका प्रचार बढ़ गया है। इस कारण आश्रममें चरखोंकी माँगसे सम्बन्धित पत्र बहुत आने लगे हैं। चरखोंकी जितनी माँग की जा रही है उसे पूरा करनेमें आश्रम बिलकुल असमर्थ है। इस तरहसे प्रचार-कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। प्रत्येक प्रान्तमें, प्रत्येक जिलेमें, प्रत्येक ताल्लुकेमें और प्रत्येक ग्राममें चरखा बना सकनेवाले कारीगर होने चाहिए। चमरखें तो अब नारियलकी सुतली या मूँजकी बनाई जाती हैं। चरखेकी प्रवृत्ति चरखा चलानेवालोंको ही लाभ पहुँचाती हो सो बात नहीं; यह प्रवृत्ति बढ़इयों और लुहारोंके लिए भी उत्साहवर्धिनी है। उसके लाभोंसे समाजका कोई भी वर्ग वंचित नहीं रह सकता।
स्वयंसेवकोंकी आवश्यकता
महागुजरातमें खादीका काम तेजीसे चलाया जा रहा है, इसलिए वहाँ बड़ी संख्यामें स्वयंसेवकोंकी जरूरत महसूस होना एक स्वाभाविक बात है। अपना पूरा समय देनेवाले स्वयंसेवकोंकी आवश्यकता है, साथ ही थोड़ा समय दे सकनेवाले स्वयंसेवक भी चाहिए। प्रत्येक स्वयंसेवकको कातना आना चाहिए और तत्सम्बन्धी सभी बातोंकी पूरी-पूरी जानकारी होनी चाहिए। स्वयंसेवकोंकी हैसियतसे सेवा करनेके इच्छुक व्यक्ति अपने नाम मेरे पास भेज दें। ताकि जरूरी मालूम होनेपर उनकी सेवाका उपयोग किया जा सके। जो स्वयंसेवक कहीं काम कर ही रहे हैं वे अपने नाम न भेजें। शक्ति और इच्छाके रहते हुए भी जिन्हें सेवाका अवसर प्राप्त नहीं हो पाया है, नाम भेजनेका निवेदन उन्हींके प्रति है। नाम भेजनेवालोंको चाहिए कि वे अपनी अर्जीमें अपनी उम्र, योग्यता, इत्यादिका भी उल्लेख करें।
नवजीवन, १-२-१९२५
३०. तार : गोकलदास ठाकरको
१ फरवरी, १९२५
मोरवी
पहलेकी कोई और तारीख दें। जिससे जोशी और अमृतलालको रुकना न पड़े।
मोहनदास
अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।