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है कि जिस खादी भण्डारमें बहुत घाटा रहता हो अथवा जिसमें घाटा कम होनेके बजाय बढ़ता ही जा रहा हो उसे बन्द कर दिया जाये। इसके अतिरिक्त गुजरातमें बाहरसे खादी लाना भी बन्द किया जाये। इस सलाहका कारण अर्थशास्त्रीय ही है। मैं हिन्दुस्तानके अन्य प्रान्तोंकी हानि करके गुजरातका भला चाहूँ यह बात तो हो ही नहीं सकती। किन्तु स्वदेशीका सिद्धान्त ही यह है कि हमें अपने पड़ोसीकी सेवा पहले करनी चाहिए। गुजरातका गेहूँ छोड़कर दक्षिणका गेहूँ खाना पसन्द करना स्वदेशीकी नीतिका भंग करना है। उससे गुजरात, दक्षिण और समस्त हिन्दुस्तानकी हानि होती है। खादीकी भावना इसी सिद्धान्तसे उत्पन्न है।

अब हम खादीका उद्देश्य देखें। खादीका एक उद्देश्य तो यह है कि खादीके द्वारा हिन्दुस्तानके गाँवोंमें जीवन-संचार किया जाये। यह बात तो तभी सम्भव है जब प्रत्येक गाँवके लोग अपनी खादी स्वयं तैयार करने लगे और यह काम तभी हो सकता है जब प्रत्येक प्रान्त अपनी खादी स्वयं बनाये; और जैसी बनाये वैसी पहने।

खादीका दूसरा उद्देश्य यह है कि खादी-प्रचारके द्वारा विदेशी कपड़ेका बहिष्कार किया जाये। यह बहिष्कार तभी सम्भव है जब हिन्दुस्तानमें जितना कपड़ा चाहिए उतना यहीं बने। अब यदि हिन्दुस्तानको विलायतके जैसा ही कपड़ा चाहिए तो वह वैसी खादी तो पूरी-पूरी नहीं बना सकता। इसीलिए हिन्दुस्तानियोंको हिन्दुस्तानमें जैसा कपड़ा मिले वैसा प्रेमपूर्वक पहननेकी आदत डालनी चाहिए। यदि सभीको आन्ध्रकी खादीकी ही आदत पड़ेगी तो आन्ध्र इतनी खादी न दे सकेगा और विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कभी न होगा। इसलिए प्रत्येक प्रान्तको बारीक खादी बनानेका प्रयत्न करना चाहिए। इस कारण भी प्रत्येक प्रान्तको अपनी-अपनी ही खादी तैयार करनी चाहिए। सामान्य नियम यह दिखाई देता है कि जबतक किसी वस्तु विशेषकी आवश्यकता नहीं होती तबतक उसको उत्पन्न करनेका प्रयत्न भी नहीं होता।

इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि कोई आन्ध्रकी खादी पहने ही नहीं या मँगाये ही नहीं। मेरा मतलब तो इतना ही है कि कमसे-कम कांग्रेसको तो उत्तम प्रकारका प्रयत्न ही करना चाहिए। इस सम्बन्धमें मध्यम प्रकारका प्रयत्न लोग करेंगे। यदि उत्तम प्रकारके प्रयत्नको कठिन होनेके कारण कांग्रेस भी न करेगी तो सम्भव है कि उसे कोई भी न करे और इस प्रकारके प्रयत्नके बिना सफलता असम्भव होती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-२-१९२५