पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(ख) ऊँची जातिवाले हिन्दुओंको चाहिए कि उनके बच्चोंके लिए मदरसे खोलें, जहाँ जरूरत हो वहाँ उनके लिए कुँआ खोदें और उन्हें सब प्रकार आवश्यक मदद पहुँचायें--जैसे उनकी नशेकी आदत छुड़ाने और उनमें सफाईके नियम पालन करनेका रिवाज डालना और उन्हें दवाई आदिकी मदद पहुँचाना।

२. जब छुआछूत बिलकुल दूर हो जायेगी तब अछूतोंका धार्मिक दर्जा क्या होगा?

उनकी धार्मिक स्थिति वैसी ही मानी जायेगी जैसी कि उच्च हिन्दुओंकी मानी जाती है। और इसलिए वे शूद्र कहे जायेंगे अतिशूद्र नहीं।

३. जब छुआछूत दूर कर दी जायेगी तब अछूतों और ऊँचे दर्जे के कट्टर ब्राह्मणोंका क्या सम्बन्ध रहेगा?

जैसा कि उनका अब्राह्मण हिन्दुओंके साथ है।

४. क्या आप अन्तर्जातीय सम्बन्धोंका प्रतिपादन करते हैं?

मैं सब जातियोंको खतम करके सिर्फ चार ही वर्ण रखना चाहूँगा।

५. अछूत लोग मौजूदा देव-मन्दिरोंमें हस्तक्षेप न करके अपने लिए नये मन्दिर क्यों न बना लें?

'ऊँची' कहलानेवाली जातियोंने ऐसे साहसके लिए उनमें अधिक शक्ति ही नहीं रहने दी है। यह कहना कि वे हमारे मन्दिरोंमें दखल देते हैं, इस सवालपर गलत तौरपर विचार करना है। हम कथित ऊँची जातिवालोंको हिन्दुओंके सर्वसाधारण मन्दिरोंमें उन्हें आने देना चाहिए और इस तरह अपने इस कर्त्तव्यका पालन करना चाहिए।

६. क्या आप जातिगत प्रतिनिधित्वके पक्षपाती हैं, और क्या आपका यह भी मत है कि अछूतोंको तमाम शासन-तन्त्रमें प्रतिनिधि भेजनका हक होना चाहिए?

नहीं, मैं यह नहीं कहता। लेकिन यदि प्रभावशाली जातियोंकी तरफसे जानबूझकर अस्पृश्योंको अलग रखा जाये, तो इस तरह उन्हें अलग रखना अनुचित होगा और इससे स्वराज्यके रास्ते में रुकावट पड़ेगी। अलग-अलग जातियोंके प्रतिनिधित्वको में स्वीकार नहीं करता। इसका मतलब यह नहीं है कि किसी एक जातिको प्रतिनिधित्व न मिले, लेकिन इससे तो उलटा प्रतिनिधित्व रखनेवाली जातियोंपर यह भार डाला जाता है कि वे उन जातियोंके प्रतिनिधित्वकी ठीक-ठीक रक्षा करें, जिनके प्रतिनिधि न हों या जिनके प्रतिनिधि अपर्याप्त हों।

७. क्या आप वर्णाश्रम-धर्मकी उपयोगिताको मानते हैं?

हाँ; लेकिन आज तो वर्णोंका स्वाँग-भर बच गया है, आश्रमोंका ठिकाना नहीं रहा और धर्म विपर्यय हो रहा है। सारी ही व्यवस्थाका पुनर्गठन होना चाहिए और धर्मके सम्बन्धमें हुई नई-नई खोजोंके साथ उसका सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए।

८. क्या आप यह नहीं मानते कि भारत कर्म-भूमि है और इसमें जन्म लेनेवाले हर शख्सको अपने भले-बुरे पूर्वकर्मानुसार ही विद्या-बुद्धि, धन और प्रतिष्ठा प्राप्त है?

पत्र-लेखक जिस अर्थमें मानते हैं, उस अर्थमें नहीं। क्योंकि यों तो जो बोओ सो काटो। किन्तु खास करके भारतवर्ष भोगभूमि न होकर कर्म-भूमि है, कर्त्तव्यभूमि है।