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कुछ उचित प्रश्न

९. छुआछूतके दूर करनेकी बात करने के पहले क्या अछुतोंमें शिक्षा-प्रचार और सुधार होना एक लाजिमी शर्त नहीं है?

अस्पृश्यता दूर किये बिना अस्पृश्योंमें सुधार या प्रचार नहीं हो सकता।

१०. क्या यह बात स्वाभाविक नहीं है, होनी तो चाहिए कि शराब न पीनेवाले शराब पीनेवालेसे और शाकाहारी मांसाहारीसे परहेज रखें?

यह आवश्यक नहीं है। शराब न पीनेवाला अपने शराब पीनेवाले भाईको उस बुरी आदतसे बचानेके लिए उसके पास जाकर अपना कर्त्तव्य करेगा। और इसी प्रकार शाकाहारी भी इसी उद्देश्यसे मांसाहारी भाईके पास जायेगा।

११. क्या यह सच नहीं है कि एक शुद्ध आदमी (इस अर्थमें कि वह मद्यप नहीं है और शाकाहारी है) आसानीसे अशुद्ध हो जाता है (इस अर्थमें कि वह शराब पीने लगता है और मांसाहार करने लगता है) जब वह उन लोगोंसे मिलता-जुलता है जो शराब पीते हैं, पशुओंको मारते हैं और मांस खाते हैं?

बुराईको बुराई न माननेवाला व्यक्ति यदि मद्यपान करे या मांस खाये तो वह अनिवार्यतः अशुद्ध या अपवित्र नहीं होता लेकिन मैं यह समझ सकता हूँ कि भ्रष्ट आदमीकी संगत करनेसे बुराईमें पड़ जाना सम्भव है। इस मामले में तो किसीको अस्पृश्योंकी संगतके लिए बाध्य करनेकी कोई बात नहीं कही गई है।

१२. कुछ कट्टर ब्राह्मण जो दूसरी जातियोंसे (जिनमें अछूत भी शामिल हैं) नहीं मिलते-जुलते और अपनी एक अलहदा जाति बनाकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति करते रहते हैं, उसका कारण क्या उपरोक्त नहीं है?

वह आध्यात्मिक स्थिति जिसकी रक्षाके लिए चारों तरफसे अपनेको बन्द करके रखना पड़े, बड़ी दुर्बल होती होगी। और इसके अलावा वे दिन भी गये जब मनुष्य सदा एकान्तमें रहकर अपने गुणोंकी रक्षा करता था।

१३. छुआछूतको दूर करनेका प्रतिपादन करके क्या आप भारतके धर्म और वर्ण-व्यवस्था (वर्णाश्रम-धर्म) में दखल नहीं देते--फिर वह धर्म और और व्यवस्था अच्छी चीज हो या बुरी?

एक सुधारकी हिमायत करना ही किसी चीज या संस्थामें दखल देना नहीं कहला सकता? दखल देना तो तभी कहा जाता जबकि मैं, जो लोग अस्पृश्यतापर कायम रहते हैं, उनपर जोरो-जुल्म करके अस्पृश्यता-निवारणके प्रश्नकी हिमायत करता।

१४. कट्टर ब्राह्मणोंको इसका विश्वास कराये बिना ही उनके धर्ममें दखल देनेसे क्या आप उनके प्रति हिंसाके दोषी न होंगे?

मैं कट्टर ब्राह्मणोंके प्रति हिंसाका दोषी नहीं हो सकता, क्योंकि मैं उनमें बिना विश्वास उत्पन्न किये उनके धर्ममें कोई दखल नहीं देता।

१५. ब्राह्मण लोग जो अछूतोंके अलावा और दूसरी जातियोंको भी स्पर्श नहीं करते, उनके साथ खाना नहीं खाते, शादी नहीं करते, अस्पृश्यता दोषके दोषी हैं या नहीं?

दूसरी जातिके लोगोंको 'स्पर्श' करनेसे यदि वे इनकार करते हैं, तो वे अवश्य दोषी है।