पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/११

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भूमिका

इस खण्डमें मईसे लेकर जुलाई, १९२५ तककी सामग्री संगृहीत है। इन तीन महीनोंकी अवधिमें गांधीजी बंगालके दौरेपर थे। इस अवधिकी सबसे प्रमुख घटना है १६ जूनको दार्जिलिंगमें चित्तरंजन दासका देहावसान । इस महान् शोक-प्रसंगकी छाया पूरे खण्डमें देखने को मिलेगी। चूंकि गांधीजी इन दिनों बंगालमें थे, इसलिए खण्डमें शान्तिनिकेतन और खादी-प्रतिष्ठान – जैसी संस्थाओं तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर और सुरेन्द्र- नाथ बनर्जी-जैसे महान् व्यक्तियोंकी चर्चाका बार-बार आना तो स्वाभाविक ही है। स्वदेशी, साम्प्रदायिक एकता और अस्पृश्यता-निवारणको उत्तेजन देने के लिए उन दिनों सामान्य रूपसे जो देशव्यापी आन्दोलन चल रहा था, उसे स्थानीय परिस्थितियोंसे अलग-अलग छटाएँ और भंगिमाएँ मिलती रहती थीं। हम देखते हैं कि इस अवधिमें गांधीजीने राजनीतिक प्रश्नोंकी चर्चा बहुत कम और धीमे स्वरमें ही की और राज- नीतिमें उन्होंने जितनी-कुछ रुचि ली, उसका सम्बन्ध अधिकांशत: स्वराज्यवादी दलकी राजनीतिसे ही रहा। उन्हें सबसे अधिक चिन्ता रचनात्मक कार्यक्रमको लागू करने के साधनके रूपमें कांग्रेसके पुनर्गठन की थी। उनके स्वरमें तीव्रता तो इस अवधिके उन अन्तिम दिनोंमें आई, जब ब्रिटेनकी हठधर्मिता अपनी पराकाष्ठापर पहुँच गई। तब उनका यह बदला हुआ स्वर सविनय अवज्ञाको अपनानेकी सम्भावनाओंका स्पष्ट संकेत देने लगा।

राजनीतिक कार्यक्रम और रचनात्मक कार्यक्रम दोनोंको उपयोगी और आवश्यक मान लिया गया। स्वराज्यवादियोंने अपना ध्यान राजनीतिक कार्यक्रमपर केन्द्रित किया और स्वयं गांधीजी तन-मनसे रचनात्मक कार्यक्रमको सम्पन्न करने में जुटे रहे। यों दोनों पक्ष एक-दूसरेको ठीक-ठीक समझकर एक-दूसरेकी सहायता करनेका भी प्रयत्न करते रहे। इस अवधिमें रचनात्मक कार्यक्रमके सम्बन्धमें गांधीजीके विचार ज्यादा निखर कर सामने आये। उन्हें इस बातका पूरा विश्वास हो गया कि तत्कालीन स्वदेशी आन्दोलन १९०५-८ के आन्दोलनकी तुलनामें अधिक ठोस आधारपर स्थित था। उनके लेखे, १९०५-८ के आन्दोलनके पीछे यद्यपि एक भव्य कल्पना थी, किन्तु उसमें संगठनका लगभग अभाव था और वह आधारित था बम्बई तथा अहमदाबादकी मिलोपर, जो अन्ततः बालूकी भौतें साबित हुईं। अब कताई विशिष्ट वर्गोको सर्व- साधारणसे जोड़नेवाला सूत्र बन गई और चरखेके माध्यमसे सबको यह प्रतीति होने लगी कि हम सब एक देशकी सन्तान हैं। गांधीजीको तो चरखेकी लगन लगी ही हुई थी, अब देशके अन्य लाखों लोगोंको भी उसकी लगन लग गई। उन्होंने चाहा कि उसे शान्तिनिकेतनमें भी और अधिक स्थान दिया जाये (पृष्ठ १८५)। उन्होंने देशबन्धु चित्तरंजन दाससे अनुरोध किया कि वे सूत कातना सीखें और निष्ठापूर्वक करोड़ों लोगोंकी खातिर ईश्वरके नामपर आधा घंटा अवश्य कातें (पृष्ठ २३६) ।