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सन्देश : 'फॉरवर्ड' को

और स्वदेशी वस्तुओंका भी उपयोग करते हैं वे सेवक अधर्माचरण करते हैं। देशसेवक तो ऐसा कर ही नहीं सकते। इस कारण बम्बईसे मायावतीमें स्वादके लिए बम्बईके आम ले जाना सेवकके लिए तो अधर्म ही है। जहाँ एक रुपयेसे काम चल सकता है वहाँ दो खर्च करना स्पष्टतः चोरी है।

इस कारण मैंने जो बात कई बार अपने मित्रोंको सूचितकी है वही यहाँ भी लिख देता हूँ। मेरे लिए नीचे लिखी चीजोंसे ज्यादा चीजोंका इन्तजाम करनेवाले न मेरा हित देखते हैं, न लोगोंका और न अपना।

मुझे शौचके लिए उतनी ही स्वच्छ जगह चाहिए जितनी स्वच्छ सोनेके लिए हो।

सोने-बैठनेका इन्तजाम साफ जगह और साफ हवामें हो तो काफी है। खाटकी जरूरत नहीं। मेरे सोने-बिछोनेके कपड़े मेरे साथ ही रहते हैं। इसलिए मुझे गद्दे या रजाईकी जरूरत नहीं पड़ती।

खानेके लिए रोज १॥ सेरके लगभग बकरीका दूध हो तो काफी है। दो नीबू भी चाहिए। अपने लिए आवश्यक फल आदि मैं अपने साथ रखता हूँ। मेरे लिए बकरीके घीकी जरूरत नहीं। मुझे यात्रामें जरूरत हो तो मैं बकरीके दूधको चीजें बनवाकर अपने साथ रखता हूँ। मैं बहुत ज्यादा खर्च करके बकरीके दूधसे घी बनवाना महापाप मानता हूँ।

मेरी सुविधाके लिए मोटरकी जरूरत नहीं। हाँ, समयकी बचतकी दृष्टिसे उसका उपयोग अवश्य किया जा सकता है।

मेरे लिए पहले दरजेके डिब्बे की बिलकुल ही जरूरत नहीं है। हाँ, फिलहाल, मुझे अकेलेके लिए, दूसरे दरजेकी जरूरत बेशक है। परन्तु मेरे साथियों और मित्रोंको तीसरे दरजेका इन्तजाम ही काफी होता है। मेरे साथ अपने खर्चसे कभी-कभी कोई भाई-बहन यात्रा करते हैं। वे अपनी जगहका इन्तजाम खुद ही कर लेते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २४-५-१९२५
 

८६. सन्देश : 'फॉरवर्ड'को

२५ मई, १९२५

चरखेके साथ आगे बढ़ो। क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह स्वराज्यवादियोंको शक्ति प्रदान कर सकता है। 'फॉरवर्ड'के पाठकगण प्रत्येक घरमें चरखा....[१] और फलस्वरूप सुभाषचन्द्र बोस शीघ्र ही हमारे बीच होंगे।

मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ८०४९) की फोटो-नकलसे।

  1. यहाँ साधन-सूत्रमें कुछ शब्द अस्पष्ट है।