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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण यह है कि वह आन्तरिक झगड़ोंसे छिन्नभिन्न हो रहा है और इससे उसकी प्रगतिकी शक्ति कुण्ठित हो गई है। तमिलनाडका भी यही हाल है। यदि वह अपने ब्राह्मण-अब्राह्मणके चिरन्तन विवादका निपटारा कर सके तो वह आसानीसे इससे भी अधिक अच्छा काम कर सकता है। परन्तु यह स्थिति मुझे विचलित नहीं कर सकती। मैं पुराना पापी हूँ, बहुत धीरे-धीरे सुधरता हूँ। मैने जो यह निराशाजनक चित्र खींचा है उससे मुझे नये मताधिकारको बदलनेको नहीं बल्कि उसपर दृढ़ रहनेकी, उसे कमजोर बनानेकी नहीं, बल्कि उसके मुख्य प्रयोजनको पुष्ट करनेकी जरूरत दिखाई देती है। मैं कांग्रेसको एक ऐसी सच्ची राष्ट्रीय संस्था, जो राष्ट्रको आवश्यकताओंकी पूर्ति करनेवाली हो, जनसाधारणको प्रतिनिधि हो, और दिय समयपर निर्धारित काम करनेवाली, तबतक नहीं बना सकता जबतक उसके सदस्योंमें तन्त्रनिष्ठा न हो, उसके हर विभागमें सहयोग न हो, और उसके हर सदस्यमें जिम्मेदारीका खयाल न हो। ये १५,००० सदस्य राष्ट्रको उद्देश्य-सिद्धिके प्रयोजनके लिए जरूरतसे ज्यादा हैं बशर्ते कि वे अपने अकीदेके सच्चे हों और अपनी अंगीकृत तमाम शोंका पालन करते हों। अपनी इस सतत यात्राके सिलसिले में जो मैंने अपने ऊपर ले ली है, मैंने जो-कुछ देखा है और देख रहा हूँ उससे मुझे इस बातका यकीन हो गया है कि कांग्रेसको मुख्यतः स्वयं सूत कातने वालोंका संघ बनानेकी आवश्यकता है। राष्ट्रके जीवनमें जो काहिली घुस गई है उसे उससे मुक्त करनेके लिए इससे बढ़कर सरल और सीधा और कोई तरीका नहीं है।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५
 

८९. किसानोंकी पुकार

जैसे-जैसे समय बीतता है, मेरा बंगालका दौरा और उसमें मुझे जो मानपत्र भेंट किये जा रहे हैं वे अधिकाधिक कामकाजी होते जा रहे हैं। उनमें अब मेरी तथा मेरे कामकी तारीफ नहीं रहती, बल्कि कुछ शिक्षाप्रद तथा मूल्यवान जानकारी दी जाती है। इस प्रकारका एक मानपत्र टिपराके किसान-संघकी ओरसे दिया गया था। उसके सारगर्भित वाक्य देखिए।[१]

मैं पाठकोंको विश्वास दिला दूँ कि मैंने इसमें से केवल औपचारिक प्रारम्भिक अनुच्छेद तथा अन्तके एक वाक्यवाले संक्षिप्त परिच्छेद तथा बेकारकी उपाधियोंसे युक्त आधे वाक्यांशको ही छोड़ा है। मैं यह माननेको तैयार हूँ कि पूर्ववर्ती विवरणमें अतिशयोक्ति है। लेकिन मैं यह कहे बगैर नहीं रह सकता कि यह कुल मिलाकर किसा-

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। मानपत्रमें कम मजदूरी, कम काम, उपजके अनौचित्यपूर्ण नीचे भाव, पीनेके पानीको कमी और मुकदमेबाजी, वगैराकी वजहसे टिंपराके अन्न और पटसन उत्पादक किसानोंको दुर्दशाका वर्णन किया गया था और उन्हें राहत दिलानेका अनुरोध किया गया था।